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श्रेष्ठ पुरुष कभी अपने मुख से स्वयं के गुण नहीं गाते

नवपद ओली तप आराधना का समापन

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श्रेष्ठ पुरुष कभी अपने मुख से स्वयं के गुण नहीं गाते

बेंगलूरु. जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में जयधुरंधर मुनि के सान्निध्य में महावीर धर्मशाला में नौ दिवसीय नवपद ओली तप आराधना का समापन बुधवार को हुआ। इसमें 75 से अधिक आराधकों ने आयंबिल की तपस्या और सामूहिक साधना की।

धर्मसभा की शुरुआत जयधुरंधर मुनि ने मंगलाचरण व जय जाप से की। उन्होंने श्रीपाल चारित्र के सरस वांचन की पूर्णाहुति करते हुए कहा कि तप कर्मों की अनंत-राशि को जलाकर राख कर देता है। तप करने वालों की अनुमोदना करने से स्वयं भी एक दिन तपस्वी बन जाते हैं। श्रेष्ठ पुरुष स्वयं कभी अपने मुख से खुद के गुण नहीं गाते, अपितु अपकार करने वाले के ऊपर भी उपकार करते रहते हैं।

मुनि ने कहा कि श्रीपाल के जीवन चारित्र से इस बात की भी शिक्षा मिलती है कि शुभाशुभ कर्म जब उदय में आते हैं तब उस समय वे कर्म यह नहीं देखते कि भोगने वाला राजा है या रंक, छोटा है या बड़ा, अमीर है या गरीब।

श्रीपाल के पूर्व भव का उल्लेख करते हुए वर्तमान में उनके शरीर में कुष्ट रोग पैदा होना, समुद्र में फेंका जाना और बचने के बाद अनेक राजकुमारियों से विवाह करना एवं राजा बनना आदि सबको कर्मों का विपाक बताया।

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नाशवान हैं भौतिक पदार्थ
बेंगलूरु. हनुमंतनगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी सुप्रिया ने बुधवार को प्रवचन में उत्तराध्ययन सूत्र पर विवेचना करते हुए कहा कि संसार के भौतिक पदार्थ नाशवान, अशाश्वत, क्षणिक व क्षणभंगुर हैं। साधक इन पर से मोह व ममत्व भाव हटाकर जीवन में समता भाव को अपनाएं। जो ज्ञान, दर्शन, चारित्र की उत्कृष्ट भाव से आराधना करते हैं उन्हें ही श्रेष्ठ महान पंडित मरण आया करता है।

साध्वी सुदीप्ति ने गीतिका पेश की। साध्वी सुविधि ने उत्तराध्ययन सूत्र की मूल वांचना की। धर्मसभा में पिंकी सिंघवी, रेखा भंडारी, अनिता सिंघवी के नौ उपवास की तपस्या के उपलक्ष्य में उनका एवं सिरसा, हरियाणा से आए अनिल जैन, मौनी जैन का संझा की ओर से बहुमान किया गया। संचालन संजय कुमार कचोलिया ने किया।