संभवत: यह पहला अवसर है जब चंद्रमा के दक्षिणी धु्रवीय प्रदेशों में भूकंपीय के आंकड़े एकत्रित किए गए हैं। चंद्रयान-3 का लैंडर विक्रम चंद्रमा के दक्षिणी धु्रव के करीब 69.37 डिग्री दक्षिणी अक्षांश और 32.35 डिग्री पूर्वी देशांतर (शिव शक्ति प्वाइंट) पर भारतीय समयानुसार 23 अगस्त 2023 की शाम 6.04 बजे उतरा था। उसके बाद 24 अगस्त से लेकर 4 सितम्बर 2023 तक लैंडर का उपकरण इलसा सक्रिय रहा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों ने कहा है कि, यह उपकरण 190 घंटे तक सक्रिय रहा और 250 से अधिक भूकंपीय संकेतों को पकड़ा। यह अत्याधुनिक उपकरण सिलिकॉन माइक्रो-मशीनिंग सेंसर तकनीक से लैस है और इसने अत्यंत सूक्ष्म चंद्र कंपन को भी दर्ज किया। इसरो वैज्ञानिकों की टीम ने चंद्रयान-3 उपकरण से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर विज्ञान पत्रिका इकारस में अपना शोधपत्र प्रकाशित किया है।
लैंडर के पे-लोड इलसा ने चंद्र भूकंपनीयता का जो सबसे लंबा दौर दर्ज किया है वह 14 मिनट का है। लेकिन, यह रोवर की चहलकदमी के हैं। आंकड़ों से पता चलता है कि, जब रोवर प्रज्ञान, लैंडर विक्रम के करीब से गुजर रहा था तो भूकंपीय संकेत तीव्र थे। लगभग 26 किग्रा वजनी रोवर, 1 सेमी प्रति सेकेंड की गति से चंद्रमा की सतह पर चल रहा था। लैंडर से 7 मीटर दूरी तक झटकों की तीव्रता उच्च रही। लेकिन, जब दूरी 12 मीटर हो गई तो भूकंपीय संकेतों की तीव्रता क्षीण होने लगी। ऐसे लगभग 200 भूकंपीय संकेत हैं जो या तो रोवर के चहलकदमी के हैं या विक्रम लैंडर के अन्य उपकरणों के संचालन से पैदा हुए कंपन के हैं। लेकिन, 50 ऐसे अत्यंत तीव्र भूकंपीय झटके भी दर्ज किए गए हैं जिनका रोवर की चहलकदमी या अन्य उपकरणों के संचालन से कोई लेना-देना नहीं है। ये झटके कुछ संकेंड के लिए महसूस किए गए हैं। ये संकेत चंद्र सतह पर प्राप्त किए गए कंपन के सामान्य संकेतों से अलग हैं। कई ऐसे भूकंपीय संकेत भी प्राप्त किए गए जो 2 सेकेंड से भी कम के थे। ऐसे संकेतों को शोध में शामिल नहीं किया गया।
वैज्ञानिकों का दावा है कि, चंद्रयान-3 के आंकड़ों पर आधारित यह शोध चंद्रमा के विज्ञान को समझने में काफी उपयोग साबित होगा। यह चंद्रमा की भूकंपीय गतिविधि और विशेष तौर पर दक्षिणी धु्रव के बारे में एक नई अंतदृष्टि प्रदान करता है। भविष्य में अगर चंद्रमा पर बस्तियां बसाई जाती हैं तो इस तरह के अध्ययन काफी महत्वपूर्ण साबित होंगे।