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सात पूर्व मुख्‍यमंत्री उतरे चुनाव प्रचार के मैदान में

विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन प्रक्रिया खत्म होने के साथ ही अधिकांश प्रत्याशी अपने-अपने क्षेत्रों में चुनाव प्रचार में जुट गए हैं

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नरेंद्र मोदी- प्रियंका गांधी

बेंगलूरु. विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन प्रक्रिया खत्म होने के साथ ही अधिकांश प्रत्याशी अपने-अपने क्षेत्रों में चुनाव प्रचार में जुट गए हैं। कांग्रेस और भाजपा अपनी-अपनी प्रचार की रणनीतियां बनाने में जुटी हैं और हालात के हिसाब से सभी दल अपनी प्रचार की रणनीति में बदलाव भी करेंगे।

जैसी की उम्मीद है भाजपा के प्रचार की कमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथ में रहेगी और इस माह के अंत से उनका प्रचार अभियान शुरू हो जाएगा। पार्टी की महासचिव शोभा करंदलाजे का कहना है कि राज्य में मोदी की करीब 14-15 सभाओं के लिए अनुरोध किया गया है और उनके कार्यक्रम को अंतिम रूप दिया जा रहा है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह खुद भी पूरी तरह से प्रचार में जुटे हुए हैं और पर्दे के पीछे से तमाम गतिविधियों पर उनका ही नियंत्रण चल रहा है।


दूसरी ओर कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी पहले से ही प्रदेश में लगातार भ्रमण कर रहे हैं लेकिन चर्चा है कि प्रचार कार्य में उनके अलावा प्रियंका गांधी को भी उतारा जा सकता है। कांग्रेस ने पिछले तीन महीनों में घनघोर चुनाव प्रचार किया है और अब तक अपनी प्रमुख प्रतिद्वंद्वी भाजपा से प्रचार के मामले में कुछ हद तक आगे नजर आती रही है लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि प्रचार अभियान में नरेंद्र मोदी की एंट्री के साथ ही तस्वीर में बदलाव आएगा। यह देखना रोचक होगा कि कांग्रेस इसका सामना करने के लिए प्रचार की क्या रणनीति अपनाती ह

रणनीति में लगातार हो रहा बदलाव

समय के साथ बदलते हालात में सभी दल अपनी प्रचार की रणनीति भी बदल रहे हैं। भाजपा ने शुरू में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को आक्रामक हिंदुत्व के मुद्दे को हवा देने के इरादे से बार-बार प्रचार के लिए बुलाया और उम्मीद की जा रही थी कि वे आखिर तक प्रचार करेंगे लेकिन उनके सूबे में दो महत्वपूर्ण उप चुनावों में उनकी हार के बाद हालात एकदम बदल गए और पार्टी ने उन्हें अपनी प्रचार की रणनीति से अलग कर लिया।

अनंत कुमार हेगड़े के आक्रामक और विवादास्पद बयानों के कारण उपजे विवादों के बाद भाजपा ने उन्हें भी राज्य में स्थानीय होने के बावजूद चुनाव प्रचार से अब तक अलग ही रखा है। इससे पता चलता है कि पार्टी प्रचार में भी अपने प्रतिद्वंद्वियों को जवाबी हमलेे का कोई मौका नहीं देना चाहती है।


क्षेत्रीय भाषा के कारण हालात अलग

आम तौर पर चुनाव प्रचार में स्टार प्रचारकों की एक फौज हर पार्टी के पास होती है, जोजनता को अपनी पार्टी के पक्ष में वोट करने के लिए लुभाते हैं। लेकिन कर्नाटक में भाषा एक बड़ा मुद्दा होने से यहां दूसरेे राज्यों की तरह ऐसे स्टार प्रचारक कितने प्रभावी साबित होंगे, यह कहना कठिन है। यहां तक कि खुद मोदी भी यदि बिना अनुवादक के भाषण देते हैं, तो उसका वह प्रभाव नहीं होता, जो अन्य हिंदीभाषी या हिंदी समझने वाले राज्यों में होता रहा है। इसलिए माना यही जा रहा है कि स्थानीय नेता ही प्रचार में सक्रिय भूमिका निभाएंगे। दोनों ही पार्टियों के पास दिग्गजों की कमी नहीं है, असल मुद्दा यह होगा कि कौन इसे कितने प्रभावी तरीके से प्रचार करेगा।

भाजपा के सबसे अधिक पूर्व सीएम

इस चुनाव में सभी पार्टियों के एक से ज्यादा पूर्व मुख्यमंत्री भी चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं और निवर्तमान मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या को जोड़ कर यह संख्या आठ हो जाती है। भाजपा के लिए उसके तीन पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस व जनता दल ध के दो-दो पूर्व मुख्यमंत्री प्रचार कर रहे हैं। भाजपा के लिए बीएस येड्डियूरप्पा (12 नवंबर 2007 से 31 जुलाई 2011), डीवी सदानंद गौड़ा (4 अगस्त 2011 से 12 जुलाई 2012) और जगदीश शेट्टार (12 जुलाई 2012 से 8 मई 2013) चुनाव प्रचार कर रहे हैं। एसएम कृष्णा भी भाजपा के लिए प्रचार करेंगे लेकिन वे 11 अक्टूबर 1999 से 28 मई 2004 तक मुख्यमंत्री रहते समय कांग्रेस में थे।

जनता दल ध के राष्ट्रीय अध्यक्ष एचडी देवेगौड़ा (दिसंबर 1994 से 31 मई 1996) और एचडी कुमारस्वामी (3 फरवरी 2006 से 8 अक्टूबर 2007) अपनी पार्टी के प्रचार के सूत्रधार हैं। कांग्रेस के प्रचार की धुरी मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या (13 मई 2013 से अब तक) के इर्द-गिर्द घूमती रही है और वे जन आशीर्वाद यात्रा के लिए राहुल गांधी के साथ लगभग पूरे प्रदेश का दौरा कर चुके हैं। कांग्रेस के एकमात्र पूर्व मुख्यमंत्री एम. वीरप्पा मोइली (19 नवंबर 1992 से 11 दिसंबर 1994) हैं।