28 दिसंबर 2025,

रविवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

हुब्बली-अंकोला रेल लाइन का रास्ता साफ

राज्य में पर्यावरण को लेकर संवेदनशील माने जाने वाले पश्चिमी घाट इलाके से होकर गुजरने वाली हुबली-अंकोला रेल-लाइन के निर्माण का रास्ता साफ हो गया है

2 min read
Google source verification

image

Shankar Sharma

Feb 14, 2016

bangalore photo

bangalore photo

बेंगलूरु /नई दिल्ली.
राज्य में पर्यावरण को लेकर संवेदनशील माने जाने वाले पश्चिमी घाट इलाके से होकर गुजरने वाली हुबली-अंकोला रेल-लाइन के निर्माण का रास्ता साफ हो गया है। राष्ट्रीय हरित पंचाट (एनजीटी) ने इस परियोजना के लिए रेलवे को अपनी मंजूरी दे दी है ताकि वह राज्य सरकार से इस परियोजना के लिए संपर्क साध सके।


राष्ट्रीय हरित पंचाट की मंजूरी इस मायने में काफी अहम है क्योंकि उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त केंद्रीय उच्चाधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) ने 16 8 किलोमीटर लंबी इस परियोजना को नामंजूर कर दिया था। मुख्य रूप से बल्लारी-होसपेट खदान से लौह-अयस्क के परिवहन के लिए यह परियोजना वर्ष 1998 में ही स्वीकृत की गई थी।

मगर सीईसी ने इससे पर्यावरण को भारी और अपूरणीय क्षति का हवाला देते हुए कहा था कि इससे वन एवं वन्य जीवों के साथ-साथ पश्चिमी घाट की जैव विविधता पर बुरा असर पड़ेगा। इस परियोजना पर विवाद वन भूमि का इस्तेमाल गैर वनभूमि गतिविधियों को लेकर है जिसके तहत रेल-लाइन का निर्माण किया जाना है। इसके लिए राज्य के धारवाड़, येल्लापुर और कारवार वन प्रभागों में कुल 965 हैक्टेयर भूमि की आवश्यकता होगी।

इस बीच हरित पंचाट ने कहा है कि वनभूमि का उपयोग गैर वनभूमि गतिविधियों के लिए किया जाएगा या नहीं, यह अधिकार परियोजना के प्रस्तावक (रेलवे) और राज्य सरकार के बीच का मामला है,जो इस मसले का हल कानूनी तरीके से निकालेंगे।

वन संरक्षण कानून 1980 की धारा 2 के अनुसार राज्य सरकार वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की पूर्व मंजूरी लेकर वन भूमि का इस्तेमाल गैर वनभूमि के रूप में करने की अनुमति दे सकती है। पैनल ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि सीईसी का इरादा रेलवे को परियोजना की अनुमति देने अथवा नामंजूर करने का था। उन्हें लगता है कि सीईसी ने अपना विचार वन संरक्षण कानून 1980 की धारा-2 के तहत मंजूरी मांगे जाने पर अनुमति नहीं देने से संबंधित था। इस मामले में मुख्य ङ्क्षचता पश्चिमी घाट के पर्यावरणीय एवं पारिस्थितिकी नुकसान से संबंधित है। एनजीटी के अध्यक्ष जस्टिस स्वतंत्र कुमार ने कहा कि इस संबंध में पंचाट परियोजना प्रस्तावक (रेलवे) को आजादी देता है कि वह राज्य सरकार से इस संबंध में संपर्क उचित प्रस्ताव के साथ संपर्क साधे।

वर्ष 2006 में राज्य के एक गैर सरकारी संगठन पर्यावरण संरक्षण केंद्र और वाइल्डनेस क्लब ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर वनभूमि के रूपांतरण पर रोक लगाने की मांग की थी। शीर्ष अदालत ने याचिका पर सुनवाई के दौरान इस परियोजना के निर्माण पर रोक लगा दी। पिछले 5 अक्टूबर को शीर्ष अदालत ने कई मामलों को हरित पंचाट के पास भेजकर उसपर निर्णय करने को कहा था।

पर्यावरण मंत्रालय का पक्ष रखते हुए अधिवक्ता बी. शेखर ने पंचाट के सामने कहा कि वन भूमि के रुपांतरण पर रोक का यह फैसला अपरिपक्व है क्योंकि इस मुद्दे पर ना तो पर्यावरण मंत्रालय और ना ही राज्य सरकार ने अपना विचार व्यक्त किया है।

परियोजना में आगे क्या
रेलवे अब राज्य सरकार के पास वनभूमि को गैर वनभूमि से जुड़ी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल रुपांतरित करने का प्रस्ताव भेज सकता है।

राज्य सरकार रेलवे के प्रस्ताव के बाद वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी के लिए आवेदन करेगी।
वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी मिलने पर राज्य सरकार परियोजना के लिए वन भूमि के रुपांतरण की अनुमति दे सकती है।