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धर्म बिना मनुष्य जीवन असार्थक

जो जीवन को उत्तम बनाने के लिए बताया गया है

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मैसूरु. वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ सिद्धार्थनगर सीआइटीबी चोल्ट्री में श्रुत मुनि ने कहा कि परमात्म का अनुभव, चर्या, शुद्ध आचरण एवं परोपकार की भावना को हम आगम कहते हैं। जो जीवन को उत्तम बनाने के लिए बताया गया है। पावन वाणी को प्रेरणा स्रोत मानते हुए जीवन को अपनाना चाहिए। ्र मनुष्य जन्म दुर्लभ है।

अत: मनुष्य जीवन में धर्म का समावेश अति आवश्यक है। जिसके जीवन में धर्म नहीं, उसका मनुष्य जीवन असार्थक है। अक्षर मुनि ने मंगलपाठ सुनाया। दिनेश पीपाड़ा, मानसी कोठारी ने अठाई तप का प्रत्याख्यान लिया। युवा संघ ने तपस्वी का बहुमान किया।

सम्यक दर्शन साधना का आधार

बेंगलूरु. हनुमंतनगर जैन स्थानक में साध्वी सुप्रिया ने कहा कि सम्यक दर्शन साधक के साधना की भव्य महल की मजबूत नींव है। इमारत की नींव कमजोर होगी तो वह ज्यादा समय तक टिकाऊ नहीं रह सकती और अल्प समय में ही आंधी तूफान, वर्षा के थपेड़ों से टूटकर जमींदोज धराशायी हो जाती है। ठीक वैसे ही धर्मसाधना के क्षेत्र में भी यदि जीवात्मा के सम्यक दर्शन, धर्म पर श्रद्धा मजबूत न हो तो उसका जीवन भी डांवाडोल होकर अनंतकाल तक संसार सागर में ही परिभ्रमण, गोता खाता रहता है।

देवों में भी इतना सामथ्र्य नहीं कि वह मानव को धर्माराधना करने से रोक सकें। साध्वी सविधि ने भजन प्र्रस्तुत किया। साध्वी सुमित्रा ने मंगलपाठ प्रदान किया। संचालन सहमंत्री रोशनलाल बाफना ने किया।

अवसर साधने वाला चढ़ता है सिद्धि की सीढ़ी

बेंगलूरु. जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ शांतिनगर के तत्त्वावधान में आचार्य महेंद्र सागर सूरी ने कहा कि जो अवसर को साध लेता है, वह सिद्धि की सीढिय़ां चढ़ता है। मनुष्य भव और धर्म सामग्री का सदुपयोग करके दुखदायी भव संसार को सीमित या समाप्त करने का हमको अवसर मिला है। आज तक हमने अनंत बार धर्म किया है ऐसा ज्ञानी कहते हैं फिर भी भवसंसार के बंधनों से मुक्ति नहीं मिली यह हकीकत है। उसमें दोष धर्म का नहीं था बल्कि हम ही मोहवश हुए थे। इस कारण से भव बंधन ढीले होने के बजाय मजबूत बने थे। अब वह भूल नहीं करनी है। भूल को सुधार लेना है।