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जन-जन के संत थे रूपमुनि

उनकी प्रवचन शैली बहुत ही उत्कृष्ट थी

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जन-जन के संत थे रूपमुनि

बेंगलूरु. वरिष्ठ प्रवर्तक रूपमुनि रजत के देवलोकगमन पर राजाजीनगर स्थानक में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में सामूहिक नवकार महामंत्र जाप का आयोजन किया गया। धर्मसभा को संबोधित करते हुए साध्वी संयमलता ने कहा कि गुरुदेव रूपमुनि ओजस्वी, तेजस्वी व प्रखर व्यक्तित्व के धनी थे। वे जैन संत ही नहीं, जन जन के संत थे। उनकी प्रवचन शैली बहुत ही उत्कृष्ट थी।

साध्वी ने कहा कि नाडोल में साधारण गोस्वामी परिवार में जन्मे रूपपुरी वर्ष 1942 में जैन धर्म की दीक्षा लेने के बाद रूपमुनि बन गए। गुरुदेव ने अपने 77 साल के साधुत्व जीवन में पीडि़त मानवता को ही अपना प्रमुख दर्शन माना। उन्होंने जैन समाज को अपने कर्तव्य का भान कराने के साथ हर कौम को साथ लेकर चलने का संदेश दिया। अपने जीवन काल में कुल 76 चातुर्मास किए। इसमें 35 चातुर्मास अपने गुरु मिश्रीमल के सान्निध्य में ही किए। वे 17 राज्यों में 55 हजार किमी से ज्यादा पैदल घूमे, सर्व समाज के लाखों शिष्यों को शाकाहार व्रत, बेटी बचाओ जैसे कार्य किए। दुनिया उन्हें गरीबों का और मानवता का मसीहा मानती थी।

इसके पूर्व साध्वी अमितप्रज्ञा ने भी गुरुदेव के प्रति श्रद्धा पुष्प अर्पित करते हुए विचार रखे। साध्वी कमलप्रज्ञा ने मार्मिक स्तवन की प्रस्तुति से सबकी आंखें सजल कर दी। संघ अध्यक्ष दानमल मेहता, जंबु कुमार दुग्गड़, नेमिचंद दलाल, प्रकाश चाणोदिया, प्रसन्न भंडारी, कांताबाई बागरेचा, ममता बागरेचा, रतलाम से महेंद्र बोथरा ने श्रद्धांजलि अर्पित कर हुए भाव व्यक्त किए। संचालन गौतम मेहता ने किया।

रूपमुनि ने किए एकजुटता के अथक प्रयास
बेंगलूरु. श्वेताम्बर स्थानकवासी संघ अशोकनगर की ओर से सोमवार को शूले स्थित महावीर जैन भवन में रूपमुनि के देवलोकगमन पर गुणानुवाद सभा का आयोजन किया गया। शूले संघ के अध्यक्ष यशवंतराज सांखला ने कहा कि उन्होंने श्रवण संघ के विकास और एकजुटता के लिए कई भगीरथ प्रयास किए। उनके योगदान को श्रमण संघ कभी भूल नहीं सकता।

अखिल भारतीय जैन कॉन्फ्रेंस महिला शाख की मायश कोठारी ने गीतिका प्रस्तुत की। इस अवसर पर अखिल भारतीय सुधर्म श्रावक संघ कर्नाटक के ट्रस्टी डॉ. बी रमेश गादिया ने कहा कि रूपमुनि की दूरदृष्टि सोच एवं समन्वयकारी गुणों से अन्य सम्प्रदाय एवं गच्छ के संत-सतियों के प्रति सहिष्णुता विशाल थी। साहित्य के क्षेत्र में उनका गहरा योगदान रहा। अखिल भारतीय साधुमार्गी जैन संघ कर्नाटक के उपाध्यक्ष मोहनलाल चोपड़ा, शूले संस्कार बहू मंडल की प्रमुख शीतल भंसाली ने भवांजलि दी। किरणराज गादिया, अनिल सुराणा, नेमिचंद भंसाली, ललित झागड़ा मौजूद रहे।