
बांसवाड़ा में महिला अत्याचार घटा पर दहेज प्रताडऩा की आड़ में होती रही है ब्लैकमेलिंग
बांसवाड़ा. महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाए गए कानूनों की आड़ में जिले में ब्लैकमेलिंग धड़ल्ले से हो रही है। यही कारण है कि इससे जुड़े ज्यादातर केस जांच में झूठे पाए जाने से पुलिस की ओर से चालान का प्रतिशत घट रहा है। खासकर छेड़छाड़ के झूठे प्रकरणों की संख्या में वर्ष 2018 में इजाफा हुआ है। जिले में पुलिस ने वर्ष 2018 में कुछ ऐसे प्रकरणों का भी खुलासा किया है, जिनमें सरेआम ब्लैकमेलिंग की जा रही थी। एक ताजा प्रकरण तो कोतवाली थाना इलाके का है, जिसमें दो युवतियों ने अपने गिरोह की मदद से एक युवक को छेड़छाड़ एवं अन्य मामले में फंसाने की पूरी तैयारी की। पुलिस की सजगता के चलते आरोपी अपने मंसूबे में विफल रहे और सलाखों के पीछे पहुंच गए। इसके अलावा शादी के नाम पर ठगी के कई मामले सामने आए।
सामाजिक बुराई 498ए के 34 प्रकरण झूठे दर्ज
ससुराल में होने वाले अत्याचारों से महिलाओं का संरक्षण करने के लिए महिलाएं आईपीसी की धारा 498 ए के तहत महिला या अन्य थानों में प्रकरण दर्ज करवाती हैं। बांसवाड़ा जिले में वर्ष 2018 में नवंबर माह तक कुल 105 प्रकरण दर्ज हुए। इनमें से सालभर में पुलिस केवल 65 प्रकरणों में ही चालान पेश कर पाई। जबकि 34 प्रकरण पूरी तरह झूठे साबित हुए। ऐसे प्रकरणों को झूठा मानकर किनारे कर दिया गया। महिला अत्याचार से संबंधित अपराध के तीन वर्षों के आंकड़ों की तुलना की जाए तो वर्ष 2018 में महिला अत्याचार के आंकड़े घटे हैं। वर्ष 2018 में कुल 396 प्रकरण दर्ज हुए जबकि वर्ष 2017 में 461 तथा वर्ष 2016 में कुल 589 प्रकरण दर्ज हुए थे। इनके अलावा अन्य प्रकरणों की संख्या में भी कमी दर्ज की है। अन्य प्रकरण वर्ष 2018 में 25 प्रकरण दर्ज हुए। जबकि वर्ष 2017 में 32 तथा वर्ष 2016 में 26 प्रकरण दर्ज हुए हैं।
तीन साल में महिला अत्याचार की यह रही स्थिति
498ए - दहेज प्रताडऩा
वर्ष दर्ज प्रकरण चालान झूठे
2018 105 65 34
2017 154 110 41
2016 204 115 79
304बी- दहेज हत्या
2018 06 03 02
2017 05 04 01
2016 14 08 05
आईपीसी 376 महिला से दुष्कर्म
2018 69 41 23
2017 81 47 30
2016 141 56 75
आईपीसी 354 स्त्री लज्जा भंग
2018 74 40 28
2017 67 37 24
2016 89 37 42
आईपीसी 363/366 विवाह के अपहरण एवं व्यपहरण
2018 111 22 57
2017 114 25 69
2016 105 28 54
समझाइश से मिली सफलता
पुलिस अधीक्षक कालूराम रावत ने बताया कि दजेज प्रताडऩा के प्रकरणों में पहले काउंसलिंग होती है। इसके बाद कमेटी की देखरेख में भी ऐसे प्रकरणों को रखा जाता है। प्रकरण समझाइश से सुलझाने का प्रयास किया जाता है और इसमें सफलता नहीं मिलती है तब प्रकरण दर्ज किया जाता है। अगर प्रकरण झूठा पाया जाता है तो उसमें एफआर लगाई जाती है।
Published on:
02 Jan 2019 11:33 am
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