
बांसवाड़ा : आजादी के जश्न के गवाह ‘आजाद चौक’ पर ध्वजारोहण का टूटा सिलसिला, पहले स्वाधीनता दिवस पर यहीं फहराया गया था तिरंगा
बांसवाड़ा. यादों को संजोये रखें तो जीवंत बनी रहती हंै और लोगों के लिए प्रेरणापुंज बनती हैं, लेकिन उन्हें भूला बिसरा दिया जाए तो वे इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाती हंै। पन्द्रह अगस्त का दिन देशवासियों के लिए गौरवशाली और स्वाभिभान से ओत प्रोत करने वाला दिन है, जिसकी गूंज शहर-शहर गांव गांव में सुनाई देती है। देश की आजादी में़े मानगढ़ धाम का नाम आते ही वागड़वासियों का सिर गर्व से ऊंचा हो जाता है। आजादी के दीवानों का एक स्थान बांसवाड़ा शहर का आजाद चौक भी रहा है। कोई बड़ी घटना तो नहीं जुड़ी है, लेकिन आजादी के दीवानों के लिए यह चर्चाओं, बैठकों का केन्द्र रहा, आजादी को लेकर लोगों में जोश का ज्वार यहीं से उठता था और जब आजादी मिली तो पहले स्वाधीनता दिवस पर इसी आजाद चौक में भी तिरंगा फहराया गया था हालांकि सरकारी समारोह अन्यत्र हुआ था।
लोग इसकी याद बनाए हुए थे लेकिन गत कुछ साल से आजाद चौक की इस पहचान को भूला बिसरा दिया गया है। जिस स्थान पर पहला जश्र मना और ध्वज फहराया गया उस स्थान की पवित्रता और याद को हम बनाए नहीं रख सके। स्वाधीनता दिवस के अवसर पर नई पीढ़ी को आजाद चौक की इस विशेषता से रूबरू कराने के लिए पत्रिका ने उस जमाने के कुछ बुजुर्गो से बात कर आजाद चौक की यादें ताजा करने की एक कोशिश की है। पेश है रिपोर्ट-
व्यापारी फहराते आए हैं तिरंगा
आजाद चौक व्यापार मंडल अध्यक्ष अशोक वोहरा ने बताया कि आजादी के समय से ही यहां पर प्रतिवर्ष स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर तिरंगा फहराया जाता रहा है। क्षेत्रीय व्यापारी और आमजन मिलकर प्रतिवर्ष आजादी का जश्न मनाते आए हैं, लेकिन दो तीन साल से कुछ दिक्कतों के कारण इसमें विराम लगा है।
मिली थी जश्न की जानकारी
मंदारेश्वर रोड निवासी वृद्धा जे. जोशवा बताती हैं कि उस समय वो कक्षा 4 में पढ़ती थी और मिशन काम्पाउंड में रहती थीं। 15 अगस्त 1947 को उन्हें आजाद चौक जाने को तो नहीं मिला था, लेकिन यह जानकारी अवश्य मिली थी कि वहां पर वृहद स्तर पर कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए थे।
क्रांतिकारियों का गढ़ था आजाद चौक
ओल्ड पैलेस रोड निवासी 85 वर्षीय जगदीश मेहता ने बताया कि उन दिनों आजाद चौक वागड़ के कांतिकारियों का मानो गढ़ था। यहीं पर ही चर्चाएं और बैठकें होती थीं। इस क्षेत्र में आजादी के प्रति लोगों का इतना जुड़ाव था कि आजादी का प्रथम जश्न लोगों ने यहीं मनाया था और उत्साह के साथ ध्वजारोहण किया गया था, जो परिपाटी लम्बे समय तक चलती रही। उस समय शहर में सिर्फ दो रेडियो हुआ करते थे। एक नगर परिषद में और दूसरा आजाद चौक पर एक रबड़ी की दुकान में जहां लोग शाम को जाकर समाचार सुनते थे और आजादी को लेकर चर्चाएं करते थे।
क्षेत्रीय लोगों और व्यापारियों ने फहराया था झंडा
सिंहवाव निवासी 93 वर्षीय मुरलीधर भट्ट बताते हैं कि आजाद चौक की देश की स्वतंत्रता को लेकर महत्व इसलिए भी है कि पूर्व से ही क्षेत्र में आजादी को लेकर विविध गतिविधियां होती रहती थीं और स्वतंत्रता की घोषणा के बाद 15 अगस्त 1947 को झंडा फहराया गया था। जिसमें क्षेत्रीय लोगों और व्यापारियों ने मुख्य भूमिका निभाई थी। प्रशासनिक कार्यक्रम अम्बा माता मंदिर के पीछे पुलिस ग्राउंड पर हुआ। जहां तकरीबन दो से तीन पर आजादी का जश्न मनाया गया। उसके बाद कार्यक्रम कुशलबाग मैदान में होने लगा।
Published on:
14 Aug 2018 01:19 pm
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