देवा शरीफ की बेमिसाल होली बाराबंकी की हाजी वारिस अली शाह मजार परिसर में सतरंगी रंगों के साथ खेली जाने वाली फूलों की होली अपने आप में बेमिसाल है। यहां होली में केवल गुलाब के फूल और गुलाल से ही होली खेलने की परंपरा है। कुंतलों फूलों की पांखुड़ियों और गुलाल से यहां हिंदू मुस्लिम ने मिलकर होली खेली। मजार के कौमी एकता गेट पर पुष्प के साथ चाचर का जुलूस निकाला गया और मजार परिसर तक पहुंचा। सूफी संत हाजी वारिस अली शाह के चाहने वाले सभी धर्म के लोग थे। इसलिए हाजी साहब हर वर्ग के त्योहारों में बराबर भागीदारी करते हैं। वह अपने हिंदू शिष्यों के साथ होली खेल कर सूफी पंरपरा का इजहार करते थे। इसीलिए उनके निधन के बाद आज भी यह परंपरा आज जारी है। यहां की होली में उत्सव की कमान दशकों से शहजादे आलम वारसी संभाल रहे हैं।
देश को आपसी सौहार्द की जरूरत होली उत्सव आयोजन से जुड़े और वारसी देवा होली समिति के अध्यक्ष शहजादे आलम वारसी के मुताबिक बुर्जग बताते थे कि सूफी संत के जिंदा रहने के दौरान ही उनके भक्त उनको होली के दिन गुलाल और गुलाब के फूल भेंट करने के लिए आते थे। इस दौरान ही उनके साथ श्रद्धालु होली खेलते थे। वहीं मजार के शिष्यों की मानें तो आज भले ही हाजी साहब दुनिया में नहीं हैं पर देश को आज भी आपसी सौहार्द की बेहद जरूरत है। इसको बनाए रखने के लिए ही वह अपने साथियों के साथ यह जश्न मनाते हैं।
दिल्ली से आते हैं हर साल दिल्ली से हर साल यहां होली मनाने आने वाले सरदारमंजीत सिंह ने बताया कि यहां की होली साम्प्रदायिक सौहार्द की अनूठी मिसाल है। यहां हर मजहब का आदमी मिलजुलकर होली खेलता है। उन्होंने बताया कि पहले वह होली नहीं खेलते थे और पिछले 30 साल से दिल्ली से यहां आकर केवल लोगों को होली खेलते देखते थे। लेकिन अब वह भी यहां लोगों के साथ जमकर होली खेलते हैं।
भाईचारे का संदेश वहीं हाजी वारिस अली शाह की मजार पर पहुंचे कांग्रेस के राज्यसभा सांसद पीएल पुनिया ने बताया कि यहां की होली आपसी भाईचारा का संदेश देती है। यहां की होली इन लोगों के लिए करारा जवाब है जो समाज को बांटने का काम करते हैं। यह देश का पहला ऐसा पवित्र स्थान है जहां सभी धर्म के लोग आते हैं और पूरे हिंदुस्तान के लिए शांति और सद्भाव का संदेश लेकर यहां से जाते हैं।