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पैदल चलकर लाखों शिव भक्त आते हैं महादेवा, कांवर के साथ लाते हैं गंगाजल, करते हैं जलाभिषेक

महादेवा में भक्तों की होती है सारी मनोकामना पूरी...

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Importance of Lodeshwar mahadev temple in Shivratri 2018 barabanki new

पैदल चलकर लाखों शिव भक्त आते हैं महादेवा, कांवर के साथ लाते हैं गंगाजल, करते हैं जलाभिषेक

बाराबंकी. महाभारत काल का साक्षी है लोधेश्वर महादेव। उत्तर भारत के तीर्थो में से महादेवा की पौराणिकता अहम है। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जनपद में स्थित महादेवा में देश के कोने-कोने से लोग दर्शन करने आते हैं। शिवरात्रि पर शिव भक्त बम-बम भोले के जायकारे लगाते हुए बाराबंकी जरूर आते हैं और महादेवा में अपनी मुरादे मांगते हैं। जब मुरादें पूरी हो जाती है तो सैकड़ो किमी पैदल चलकर लाखों शिव भक्त कांवर के साथ गंगा जल लेकर आते हैं और शिव का जलाभिषेक करते हैं।


शिव भक्तों का संगम

लोधेश्वर महादेवा शिव भक्तो का वह संगम है, जहां आस्था सिर चढ़ कर बोलती हैI वैसे तो महादेवा में हर दिन शिव भक्तो की भीड़ जमा रहती हैI लेकिन फाल्गुन मॉस में कांवरिये कई राज्यों से पद यात्रा कर महादेवा पहुचते हैं और भोलेनाथ शिव शंकर के दर्शन कर धन्य होते हैं। हर जगह बम-बम भोले, जय भोले के नाम से जयकारा गूंजता हैI कुछ लोगो का कहना है की कावारिंया शिव की बरात में बाराती बनते हैं औए वे कांवर लेकर अपने अपने घर से महादेवा पहुचते हैंI


पैदल यात्रा कर पहुंचते हैं शिव भक्त

महादेवा तक की इस कांवर यात्रा में बूढें, जवान, बच्चों के अलवा महिलाएं और लडकियां भी शामिल होती हैंI कंधें पर कांवर और हाथ में बैसाखी लेकर दिन रात पद यात्रा कर शिव भक्त महादेवा पहुचते हैंI जब ये शिव भक्त कावर लेकर घर से निकलते हैं तभी से उनके घर की महिलाएं न तो श्रंगार करती हैं और न ही कोई अच्छा पकवान बनाती हैं। महिलाएं तब तक साधारण जीवन गुजारती हैं जब तक शिवभक्त महादेव के दर्शन कर श्रंगार का पूरा सामान लेकर घर वापस नहीं लौट आतेI


भक्तों की अटूट आस्था

इटावा जनपद से श्रद्धालु हरि प्रसाद शुक्ला की मानें तो नौकरी मिलने के बाद से वे बराबर कांवर लेकर पैदल चल के महादेवा में शिव का जलाभिषेक करते हैं। वही कानपुर देहात जनपद से आ रहे दीपक भी कई साल से महादेवा कांवर लेकर आ रहे हैं। वहीं गाजियाबाद जनपद के सतीश भी अपनी मान्यता पूरी होने के बाद से लगातार ये परंपरा निभा रहे हैं।

महाभारत काल का शिवलिंग

वहीं मंदिर के पुजारी रामदास की मानें तो ये शिवलिंग प्राचीन काल महाभारत के समय का है। पाचों पांडवों ने इस शिवलिंग को स्थापित कर पूजा अर्चना की थी और ये शिवलिंग कालांतर में लुप्त हो गयी थी। बाद में ये शिवलिंग किसान लोधेराम के खेत से मिला थी। तभी से लेकर आज तक यहां आस्था सिर चढ़ कर बोलती है। जबकि कई विद्वानों का मानना है की भारत में कुछ विशेष स्थानों पर शिवलिंग का खुद से प्रकट हुआ। उनमे से एक महादेवा भी है। यही वजह है की लोधेश्वर महादेव की आराधना कभी खाली नहीं जाती और यहां भक्तों की सारी मनोकामना पूरी होती हैं।