scriptबारां में तलाई निर्माण के नाम पर बर्बाद हो रहा जंगल | The forest is being destroyed due to narega digging | Patrika News

बारां में तलाई निर्माण के नाम पर बर्बाद हो रहा जंगल

locationबारांPublished: Mar 04, 2021 11:58:00 pm

Submitted by:

mukesh gour

वन विभाग की उदासीनता से नाहरगढ़ रेंज के जलवाड़ा व किशनपुरा नाका में डेढ़ दशक से रोजगार के नाम पर खोदी जा रही तलाइयां

बारां में तलाई निर्माण के नाम पर बर्बाद हो रहा जंगल

बारां में तलाई निर्माण के नाम पर बर्बाद हो रहा जंगल

जलवाड़ा (बारां). वन विभाग की उदासीनता से नाहरगढ़ रेंज के जलवाड़ा व किशनपुरा नाका में डेढ़ दशक से रोजगार के नाम पर तलाइयां खोद कर जंगल को बर्बाद किया जा रहा है। महानरेगा के अंतर्गत ग्राम पंचायतों ने लाखों खर्च कर डेढ़ दर्जन तलाईयां सैंकड़ों श्रमिकों से रोजगार के नाम पर खुदवा दी हंै। तलाईयों की जद में आए कई पेड़ नष्ट हो गए हैं। पर्यावरण प्रेमी महावीर नागर के अनुसार मनरेगा श्रमिक तलाई में मिट्टी खुदाई के नाम पर पैड़, पौधों की जड़ों तक खुदाई कर कर देते हैं। जैसे ही बारिश होती है। तलाई की जद में आए दर्जनो ंपैड़, पौधे धराशायी हो जाते है। कई बार लोगों ने अधिकारियों को शिकायतें भी की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
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यहां खोदी तलाइयां
जलवाड़ा नाके में करीब एक दर्जन तलाईयां खुदवा दी गई है। नाका के अहमदी व नया गांव वन खंड में फूट तालाब के निकट 2 तलाई, सीआईजी प्लांटेशन में चतरा के टापरों के निकट 2 तलाई, पंडाली के निकट जंगल में 3 तलाई, नया गांव मंदिर के निकट एक तलाई, क्लोजर नं. तीन में 3 तलाई, क्लोजर नं.4 में 2 तलाई क्लोजर नं.एक में एक तलाई, हरिपुरा वॉच टॉवर के निकट जंगल में 4 तलाई खोद दी गई है। बमोरी में सहरशा तलाई, हांका क्लोजर में एक तलाई, गढूली में एक तलाई, कदिली बीड में एक तलाई खोद दी गई है। किशनपुरा नाके में कदिली बंजारा बस्ती के निकट एक तलाई, खल्दा गांव के निकट बांकडिय़ा में एक तलाई, लाठखेड़ा के सिमलोद मार्ग पर एक तलाई, छत्रगंज के निकट नाहरगढ रोड़ पर सब ग्रिड स्टेशन के निकट एक-एक तलाई, रामबिलास मार्ग पर एक तलाई खुदवा दी गई है। इसके अलावा ग्राम पंचायतों ने महानरेगा में रेंज के नाहरगढ़, ढिकोनिया व सिमलोद नाके में भी कई तलाईयां खुदवा दी हैं।
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तलाइयां तो हैं पर इनमें पानी नहीं रुकता
ग्राम पंचायतों के तलाईयां खुदवाने का मकसद श्रमिकों को रोजगार देना है। अधिकांश तलाईयां वहां खोदी गई है। जहां बारिश में पानी की आवक नहीं होती। इस कारण तलाईयां रीती पड़ी हैं। यानि सरकार के लाखों रूपये खर्च, पर्यावरण का नुकसान और पानी भी नसीब नहीं।

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