
कमिश्नरी में 257 क्रांतिकारियों को दी गयी थी फांसी
बरेली। आजादी की लड़ाई में रुहेलखंड क्रांतिकारियों ने भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था। जंग ए आजादी में रुहेलखंड का बरेली जिला क्रांतिकारियों का बड़ा गढ़ था। 1857 की लड़ाई में रुहेला सरदार खान बहादुर खान के नेतृत्व में आजादी के दीवाने सर पर कफ़न बाँध कर अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई में कूद पड़े थे। बरेली में आजादी की तमाम निशानियां आज भी मौजूद है। जिसमे से एक है बरेली की कमिश्नरी जहाँ पर बरगद के पेड़ से लटका कर 257 आजादी के दीवानों को फांसी पर लटका दिया गया था। कमिश्नरी में बना शहीद स्तम्भ इस बात की गवाही दे रहा है। और ये शहीद स्तम्भ आज भी देश की आजादी में क्रांतिकारियों के बलिदान की याद दिलाता है।
10 माह अंग्रेजी हुकूमत से आजाद रहा रुहेलखंड
आजादी की पहली लड़ाई में 1857 में बरेली समेत पूरा रुहेलखंड क्रांति की आग में सुलग गया था। नवाब खान बहादुर खान के साथ पं. शोभाराम समेत अन्य क्रांतिकारियों ने ब्रितानिया हुकुमत की नींव हिला दी थी और बरेली को कुछ समय के लिए आजादी दिला दी थी। करीब 10 माह पांच दिन तक बरेली अंग्रेजी हुकुमत से मुक्त रहा। लेकिन अंग्रेजों ने एक बार फिर 6 मई 1858 को शहर में प्रवेश करने के साथ ही क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया था।
मुकदमे के बाद दी गई फांसी
गिरफ्तार किए गए क्रांतिकारियों पर मुकदमा चलाया गया जिसके बाद 24 फरवरी 1860 को खान बहादुर खान को पुरानी कोतवाली में फांसी दी गई जबकि 257 क्रांतिकारियों को इस बरगद के पेड़ पर फांसी पर लटका दिया गया था। क्रांति की अमिट छाप इस बरगद की हर शाख और पत्ते पर उकर आई थी। आज वह पेड़ तो नहीं रहा लेकिन उसकी जड़ों में खड़ा शहीद स्तंभ उस क्रांति की याद दिलाता है।
खान बहादुर खान को जेल में किया दफन
खान बहादुर खान को फांसी देने के बाद भी अंगेजो का ख़ौफ़ समाप्त नहीं हुआ उन्हें डर था कि कही लोग खान बहादुर खान को फांसी दिए जाने वाली जगह पर इबादत न शुरू कर दे इसके लिए अंग्रेजों ने खान बहादुर खान को बेड़ियों समेत पुरानी जिला जेल में दफन कर दिया था।काफी प्रयास के बाद 2007 में खान बहादुर खान की कब्र को जेल से बहार निकाला गया।
Published on:
11 Aug 2018 06:05 pm
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