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नोटबंदी के बाद जीएसटी के झटके से जरी उद्योग के धागों की गांठ ऐसी खुली कि आज तक न जुड़ सकी

नोटबन्दी के बाद जीएसटी की मार जरी कारोबार से जुड़े हजारों लोगों पर पड़ी है और यह कारोबार बन्दी की कगार पर पहुंच चुका है।

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बरेली

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Amit Sharma

Jul 01, 2018

GST

नोटबंदी के बाद जीएसटी की मार से जरी उद्योग के धागों की गांठ ऐसी खुली कि आज तक न जुड़ सकी

बरेली। कभी बरेली का जरी उद्योग भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अलग पहचान रखता था। जरी प्रोजेक्ट के दम पर ही शहर को स्मार्ट सिटी का दर्जा भी मिला था लेकिन अब वही जरी उद्योग बन्दी की कगार पर है। नोटबन्दी के बाद जीएसटी की मार इस कारोबार से जुड़े हजारों लोगों पर पड़ी है और यह कारोबार बन्दी की कगार पर पहुंच चुका है। नोटबन्दी के बाद जीएसटी लगने के बाद छोटे व्यपारियों का काम तो बन्द ही हो गया है। जिसके कारण इस कारोबार से जुड़े हजारों लोग बेरोजगार हो गए हैं और अब ये लोग दूसरा काम कर अपना गुजर बसर कर रहें हैं।

सिर्फ बचे बड़े कारोबारी

जरी के बड़े कारोबारी में शुमार यूसुफ जरीवाला बताते हैं कि पहले जरी के काम में इतना टर्न ओवर था जितना किसी काम में नहीं था और यहां से माल बनकर विदेशों तक में जाता था लेकिन धीरे धीरे ये कारोबार पिछड़ता चला गया और नोटबन्दी और जीएसटी के बाद तो कारोबार सिर्फ 10 प्रतिशत ही बचा है। उनका कहना है कि जरी में पांच प्रतिशत में से 18 प्रतिशत की जीएसटी है और जीएसटी में इतनी पेचीदगियां हैं कि छोटे व्यापारियों ने काम ही बन्द कर दिया है और वो अब कोई दूसरा काम करने लगे हैं। जो कारोबारी हर माह 10 लाख तक का कारोबार करते थे उनका काम जीएसटी लागू होने के बाद बन्द हो गया है उन्होंने सरकार से मांग की है कि इस कारोबार को संजीवनी देने के लिए सरकार जरी कारोबार में कुछ छूट प्रदान करें जिससे कि इससे जुड़े लोग उबर सकें और एक बार फिर बरेली का जरी उद्योग अपनी एक अलग पहचान बना सके।

10 प्रतिशत बचा कारोबार

जरी के एक अन्य ठेकेदार के अनुसार इस काम में ज्यादातर अनपढ़ और कम पढ़े लिखे लोग ही जुड़े हैं और जीएसटी की पेचीदगी लोगों की समझ में नहीं आई उन्हें रिटर्न दाखिल करने में दिक्कत हुई जिसकी वजह से छोटे कारोबारी इस काम से अलग हो चुके हैं और अब ऑटो रिक्शा चला रहें हैंं। जरी कारोबारी आदिल बताते हैं कि इस काम से जुड़े फेरीवालों ने आना ही बन्द कर दिया है क्योंकि जीएसटी लगने के बाद कच्चा माल महंगा हो गया है जिसके कारण अब माल तैयार होने की लागत बढ़ गई है। पहले जो माल हजार में तैयार होता था अब वही माल 1200 रुपए तक में तैयार होता है लेकिन इस माल को बेचने वाले उसी पुराने रेट पर ही माल मांगते हैं। इस समय सीजन के बावजूद भी काम ठप पड़ा है और अब महज 10 प्रतिशत की कारोबार जरी का बचा हुआ है।

वन डिस्ट्रिक वन प्रोडक्ट से है उम्मीद

जरी उद्योग को फिर वही पहचान दिलाने के लिए योगी सरकार ने वन डिस्ट्रिक वन प्रोडक्ट योजना के तहत बरेली के जरी उद्योग को शामिल किया है जिसके लिए बजट में 250 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। जिले में करीब पांच लाख जरी के कारीगर थे जिनमें करीब दो लाख महिलाएं भी थीं लेकिन कारोबार में गिरावट आने के बाद जरी कारीगर बदहाली का जीवन जीने को मजबूर हैं बहुत से कारीगरों ने अब ये काम छोड़ दूसरा काम शुरू कर दिया है लेकिन अब सरकार की इस योजना से जरी उद्योग को संजीवनी मिलने के आसार हैं जिससे एक बार फिर इन कारीगरों के अच्छे दिन आने की उम्मीद है।


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