
devutthana ekadashi 2018: चार माह बाद जागेंगे देव लेकिन नहीं होंगी शादियां , जानिए कारण
बरेली। देवउठनी एकादशी से सभी शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाती है। दीपावली के पश्चात आने वाली इस एकादशी को ”देवउठनी“ या ”देव प्रबोधिनी एकादशी“ भी कहा जाता है। चार माह पूर्व आषाढ़ शुक्ल देव शयनी एकादशी के दिन शयनस्थ हुये देवी-देवताओं मुख्यतः भगवान श्री विष्णु का इस एकादशी को जाग्रत होना माना जाता है। विष्णु के शयनकाल के इन चार मासों में विवाह आदि मांगलिक शुभ कार्याें का आयोजन निषेध माना जाता है। हरि के जागने के बाद ही इस एकादशी से सभी शुभ एवं मांगलिक कार्य शुरू किये जाते हैं। बालाजी ज्योतिष संस्थान के ज्योतिषाचार्य पंडित राजीव शर्मा के अनुसार क्योकि 13 नवंबर को गुरु अस्त हुए थे इस लिए इस बार इस दिन विवाह आदि का योग नहीं बन रहा है लेकिन इस दिन स्वयं सिद्ध अबूज मुहुर्त है।
गुरु है अस्त
devutthana ekadashi 19 नवम्बर को है और इस दिन सिद्ध योग प्रातः 06ः47 से दोपहर 02ः30 बजे तक रहेगा। ऐसा माना जाता है कि इस दिन शादी विवाह के लिए किसी मुहूर्त की जरूरत नहीं होती है लेकिन इस बार गुरु अस्त होने की वजह से शादी विवाह का मुहूर्त नहीं है। देवउठान एकादशी से दिसंबर तक लगातार शादियों के शुभ मुहूर्त रहते है लेकिन इस बार गुरु अस्त होने की वजह से शादी के शुभ मुहूर्त नहीं है।आठ दिसंबर को बृहस्पति का तारा उदय होगा जिसके बाद ही शादी के शुभ मुहूर्त वाले दिन पड़ेंगे।
करें तुलसी पूजन
लोक मान्यता परम्परानुसार देव प्रबोधिनी एकादशी में ही तुलसी विवाह किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण जिस दिन हो उससे पूर्व दिन अथवा रात्रि में तुलसी विवाह होना चाहिए। इस दिन व्रती स्त्रियों को प्रातः काल स्नानादि से निवृत्त होकर आंगन में चैक पूर कर भगवान विष्णु के चरणों को कलात्मक रूप से अंकित करना चाहिए। दिन की तेज धूप में विष्णु जी के चरणों को ढ़क दिया जाता है। रात्रि को विधिवत पूजन के बाद प्रातःकाल भगवान को शंख, घंटा-घड़ियाल आदि बजाकर जगाया जाता है और पूजा करके कथा सुनी जाती है।
Updated on:
17 Nov 2018 05:35 pm
Published on:
17 Nov 2018 12:54 pm
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