
फ्री विल बैप्टिस्ट चर्च पर पर आजादी की लड़ाई में हुआ था हमला
बरेली। ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जब 1857 की क्रान्ति शुरू हुई तो उसकी चिंगारी रुहेलखंड में भी भड़की। रुहेलखंड की सरजमीं पर रुहेला सरदारों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था। रुहेला सरदारों की हिम्मत और बहादुरी के कारण रुहेलखंड करीब 10 माह तक आजाद भी रहा। रुहेला सरदारों ने अंग्रेजों की ईंट से ईंट बजा दी थी। इसी क्रान्ति का गवाह बना था कैंट इलाके में स्थित फ्री विल बैप्टिस्ट चर्च। इस चर्च पर हमला कर क्रांतिकारियों ने 40 अंग्रेजों को कत्ल कर दिया था और चर्च में तोड़ फोड़ करने के बाद चर्च को आग के हवाले कर दिया था। रुहेलों के इस हमले ने ब्रिटिश सरकार को हिला कर रख दिया था क्योकि पहली बार इतनी बड़ी संख्या में अंग्रेजों को मारा गया था। बरेली क्लब के सामने स्थित ये चर्च आज भी ईसाईयों की आस्था का केंद्र है।
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1838 में हुआ था निर्माण
ईस्ट इंडिया कंपनी के लोग जब ब्रिटिश सरकार का अंग बन चुके थे, तब उन्होंने ईसाई समुदाय से धन एकत्र कर सन 1838 में इस चर्च का निर्माण कराया। ब्रिटिश बिशप डैनियल विल्सन डी डी कोलकाता से यहां आए और चर्च का निर्माण किया। जिसके बाद ये चर्च अंग्रेजों का प्रमुख अड्डा बन चुका था। 1857 का संग्राम जब शुरू हुआ तो क्रांतिकारियों की नजर इस चर्च पर पड़ी और 31 मई 1957 को चर्च पर हमला कर दिया गया। रुहेलों ने चर्च पर हमला किया और चर्च के पादरी डेनियल विल्सन के पूरे परिवार समेत 40 अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया। और चर्च को ध्वस्त कर दिया। जंग का प्रारंभ फतेहगंज पश्चिमी से हुआ था। गदर में इस चर्च के प्रशासनिक अधिकारी जार्ज डेवी रेक्स समेत प्रार्थना कर रहे ईसाई समुदाय के 40 लोगों की हत्या कर दी गई।मरने वालों में तत्कालीन पादरी, उनकी पत्नी और आठ वर्षीय बेटा भी था। पादरी और उनके परिवार की कब्रें आज भी चर्च परिसर में बनी हैं।
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बंदूक ले जाने की मिली इजाजत
रुहेलों के इस हमले के बाद चर्च में बंदूक ले जाने की इजाजत दी गई। बंदूक टांगने के लिए चर्च में नई बैंच लगाई गई जिसमे बंदूक टांगने का कुंडा भी लगाया गया।
Published on:
12 Aug 2018 12:38 pm
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