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निगम अफसरों की पारदर्शिता पर सवाल: ब्लैकलिस्ट और डिबार फर्म ने डाला एबीसी सेंटर टेंडर, गुपचुप चल रहा खेल

नगर निगम की कार्यप्रणाली एक बार फिर सवालों के घेरे में है। कुत्तों की नसबंदी और देखभाल के लिए बनाए गए नए एनिमल बर्थ कंट्रोल (एबीसी) सेंटर के संचालन हेतु टेंडर प्रक्रिया में गंभीर गड़बड़ी सामने आई है।

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बरेली। नगर निगम की कार्यप्रणाली एक बार फिर सवालों के घेरे में है। कुत्तों की नसबंदी और देखभाल के लिए बनाए गए नए एनिमल बर्थ कंट्रोल (एबीसी) सेंटर के संचालन हेतु टेंडर प्रक्रिया में गंभीर गड़बड़ी सामने आई है। इस प्रक्रिया में एक ऐसी फर्म ने निविदा डाली है जो पहले से ही कई राज्यों में ब्लैकलिस्ट और डिबार हो चुकी है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि अधिकारियों को पूरी जानकारी होने के बावजूद भी निविदा निरस्त नहीं की गई, बल्कि टेक्निकल और फाइनेंशियल बिड की प्रक्रिया आगे बढ़ा दी गई।

1.40 करोड़ की लागत से बना सेंटर

सुंदरासी क्षेत्र में 1.40 करोड़ की लागत से एबीसी सेंटर का निर्माण कराया गया है। नगर निगम ने इसके संचालन के लिए टेंडर जारी किए, जिसमें केवल दो फर्मों ने हिस्सा लिया। इनमें से एक संस्था पहले ही राजस्थान और उत्तराखंड समेत अन्य राज्यों में लापरवाही और अनियमितताओं के कारण ब्लैकलिस्ट हो चुकी है।

पुराने आरोप और ब्लैकलिस्ट का इतिहास

राजस्थान की यह संस्था पहले रुद्रपुर में भी एबीसी सेंटर चला चुकी है। वहां नसबंदी प्रक्रिया में भारी गड़बड़ी, पशु चिकित्सा मानकों की अनदेखी और रिकॉर्ड में हेरफेर सामने आया था। जांच के बाद उत्तराखंड सरकार ने फर्म का अनुबंध रद्द कर उसे ब्लैकलिस्ट कर दिया। इसके बावजूद अब उसी विवादित फर्म को बरेली नगर निगम की निविदा प्रक्रिया में जगह मिल गई है।

अफसरों की जिम्मेदारी पर सवाल

नगर आयुक्त संजीव कुमार मौर्य का कहना है कि यदि ब्लैकलिस्ट फर्म की ओर से निविदा डाली गई है तो इसकी गहन जांच कराई जाएगी। दस्तावेजों में गड़बड़ी पाई गई तो संबंधित अधिकारी और बाबुओं पर भी कार्रवाई होगी। वहीं पर्यावरण अभियंता राजीव कुमार राठी ने कहा कि सूचना मिली है और निगम जांच कर रहा है।

गंभीर मामला: जनता के स्वास्थ्य से जुड़ा प्रश्न

विशेषज्ञों का कहना है कि एबीसी सेंटर केवल कुत्तों की नसबंदी नहीं बल्कि जनस्वास्थ्य और पशु कल्याण से सीधा जुड़ा हुआ मुद्दा है। यहां किसी भी तरह की लापरवाही शहर में आवारा कुत्तों की समस्या को और बढ़ा सकती है। इससे पहले भी शहर में नसबंदी कार्य की गुणवत्ता और पारदर्शिता पर सवाल उठते रहे हैं।


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