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जब जसवंत सिंह ने बंद कर दी थी पाक पत्रकारों की बोलती, शेर की तरह आतंकियों के साथ बैठे थे प्लेन में, पढ़िए दिलचस्प किस्से

Jaswant Singh Birth Anniversary: जसवंत सिंह 1960 के दशक में भारतीय सेना में रहे। इसके बाद उन्होंने राजनीति की तरफ कदम बढ़ाए।

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Jaswant Singh

फाइल फोटो

Jaswant Singh Birth Anniversary: पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता जसवंत सिंह की आज जयंति है। उनका जन्म आज के दिन 3 जनवरी 1938 को राजस्थान के बाड़मेर जिले के जसोल गांव में ठाकुर सरदारा सिंह और कुंवर बाईसा के घर हुआ था। अगस्त 2014 में पूर्व वित्त, विदेश और रक्षामंत्री जसवंत सिंह घर में गिर गए थे, जिसके बाद से वे 6 साल तक कोमा में थे। 27 सितंबर 2020 को उनका निधन हो गया था।

संभाली थी अहम जिम्मेदारी

जसवंत सिंह भाजपा के कद्दावर नेताओं में से एक माने जाते थे। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में 1998 से 2004 के बीच वित्त, रक्षा और विदेश जैसे अहम मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाली थी। साल 2004 से 2009 तक राज्यसभा में विपक्ष के नेता रहे। जसवंत सिंह 1998 से 1999 तक योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे। वे तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के बेहद करीबी थे। उन्हें वाजपेयी दरबार का रत्न कहा जाता था।

भैरोसिंह शेखावत थे राजनीतिक गुरु

जसवंत सिंह 1960 के दशक में भारतीय सेना में रहे। इसके बाद उन्होंने राजनीति की तरफ कदम बढ़ाए। भाजपा के दिग्गज नेता और पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोसिंह शेखावत ने उन्हें जनसंघ में शामिल कराया था। इसके बाद जसवंत सिंह के राजनीतिक करियर को नई उड़ान मिली। ऐसे में भैरोसिंह को जसवंत सिंह का राजनीतिक गुरु कहा जाता है।

वाजपेयी सरकार में बने वित्त, रक्षा और विदेश मंत्री

1980 के दशक में जसवंत सिंह को राज्यसभा के लिए चुना गया। इसके बाद जब महज 13 दिनों के लिए अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री बने तो उन्हें वित्त मंत्री बनाया गया। इसके बाद जब वाजपेयी दोबारा से प्रधानमंत्री बने तो जसवंत सिंह को विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री और वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली। वे खुद को उदारवादी नेता मानते थे।

आतंकियों को लेकर कंधार गए थे

अटल बिहारी सरकार में जसवंत सिंह ने रक्षा मंत्रालय भी संभाला था। साल 1999 में इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट को हाईजैक करके अफगानिस्तान के कंधार ले जाया गया था। इस दौरान यात्रियों को छोड़ने के बदले तीन खूंखार आतंकियों को सौंपने की मांग की गई थी। इस दौरान जसवंत सिंह खुद कंधार तक गए थे। हालांकि उस वक्त सिंह की काफी आलोचना भी हुई थी। इसकी सफाई में उन्होंने कहा था कि ऐसा उन्होंने उच्चाधिकारियों की सलाह पर किया था। दरअसल उस वक्त मौके पर बड़ा निर्णय लेने वाले शख्स की जरूरत थी।

जिन्ना की तारीफ की थी

जसवंत सिंह अपनी किताब '‘जिन्ना: इंडिया-पार्टिशन-इंडिपेंडेंस’ की वजह से विवादों में भी घिरे थे। इस किताब में उन्होंने मुहम्मद अली जिन्ना की तारीफ की थी। वहीं किताब में दावा किया गया था कि विभाजन के लिए जवाहरलाल नेहरू की केंद्रीकृत राजनीति जिम्मेदार थी। इसके बाद भाजपा ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया था।

भाजपा से की थी बगावत

हालांकि बाद में जसवंत सिंह फिर भाजपा में शामिल हो गए थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया था। उनकी बाड़मेर सीट से भाजपा ने कर्नल सोनाराम चौधरी पर दांव खेला था। ऐसे में सिंह नाराज हो गए और निर्दलीय मैदान में उतर गए। ऐसे में पार्टी ने उन्हें निकाल दिया। जसवंत सिंह यह चुनाव हार गए थे।

राष्ट्रपति उम्मीदवार भी रहे

2012 में जब राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव हुए तो राजग की तरफ से जसवंत सिंह को मैदान में उतारा गया। उस दौरान तमिलनाडु की मुख्यमंत्री और एआईएडीएमके प्रमुख जे जयललिता ने भी उन्हें समर्थन देने की घोषणा की। हालांकि जसवंत सिंह यूपीए सरकार के उम्मीदवार मोहम्मद हामिद अंसारी से हार गए थे।

सर्वश्रेष्ठ सांसद का सम्मान मिला

साल 2001 में जसवंत सिंह को सर्वश्रेष्ठ सांसद का सम्मान मिला था। उन्होंने अजमेर के मेयो कॉलेज से बीए और बीएससी की डिग्री हासिल की। इसके बाद सिंह ने सेना में अफसर के तौर पर देश की सेवा की और सेवानिवृत्त हुए।

पाकिस्तानी पत्रकारों को दिया था करारा जवाब

जसवंत सिंह की सलाह पर वाजपेयी ने 14 से 16 जुलाई 2001 के बीच जनरल परवेज मुशर्रफ को शिखर वार्ता के लिए आगरा बुलाया था। हालांकि दोनों देशों के बीच संयुक्त वक्यव्य के दस्तावेजों पर सहमति नहीं बन पाई थी। इस दौरान पाकिस्तानी पत्रकारों ने सिंह से सवाल किया था कि आपने मुशर्रफ को अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर क्यों नहीं जाने दिया तो सिंह ने जवाब दिया था कि गरीब नवाज की दरगाह पर वही जाते हैं, जिन्हें वो वहां बुलाते हैं।

मई 2014 में जसोल जोधपुर से दिल्ली गए। अगस्त में वह घर में गिर गए। उनके सिर में गंभीर चोटें आईं। उन्होंने दिल्ली स्थित सेना के अस्पताल में भर्ती भी कराया गया। इसके बाद वे कोमा में चले गए थे। इसके बाद 27 सितंबर 2020 को उनका निधन हो गया था। उनकी पत्नी का नाम शीतल कंवर है। उनके दो पुत्र हैं। बड़े बेटे मानवेंद्र सिंह बाड़मेर से सांसद भी रह चुके हैं।

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