5 दिसंबर 2025,

शुक्रवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

विश्नोई समाज की परम्पराः होलिका दहन के दिन मनाते शोक, अगले दिन मनाते हैं खुशियां

रंगों का पूर्व होली अब भारत में ही नहीं दुनिया के कोने में मनाए जाने लगा है, लेकिन बिश्नोई समाज होली वाले दिन खुशियों की जगह शोक मनाता है।

2 min read
Google source verification
rajasthan bishnoi samaj holi 2021

बाड़मेर। रंगों का पूर्व होली अब भारत में ही नहीं दुनिया के कोने में मनाए जाने लगा है, लेकिन बिश्नोई समाज होली वाले दिन खुशियों की जगह शोक मनाता है। होली के दिन होलिका दहन से पूर्व समाज के लोग घरों में सादा भोजन खिचड़ा बना कर खाते हैं। भक्त प्रह्लाद के अनुयायी बिश्नोई होली पर होलिका दहन नहीं करते, न ही रंग गुलाल का उपयोग करता है। इसके पीछे इनकी धार्मिक मान्यताएं हैं।

बिश्नोई समाज की मान्यता के अनुसार होली दहन में लकड़ियों का इस्तेमाल होता है और ज्वाला के दौरान सैकड़ों कीट-पतंगों इसमें गिरकर मर जाते हैं, इसलिए होली दहन के दौरान कहीं ज्वाला भी देखना पसंद नहीं करते। राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और उत्तरप्रदेश सहित कई राज्यों में रहने वाला बिश्नोई समाज इसी तरीके से होली मनाता है। बिश्नोई समाज के लोग खुद को प्रह्लाद पंथी मानते हैं।

जब होली के दिन होलिका भक्त प्रहलाद को लेकर चिता में बैठती है तो उस समय बिश्नोई समाज प्रह्लाद के जल जाने की आशंका को लेकर गमहीन हो जाता है, लेकिन जैसे ही दूसरे दिन यानि रामा-श्यामा को होलिका के जल जाने और प्रह्लाद के बच जाने की खबर मिलती है तो सुबह खुशियां मनाई जाती है तब हवन, पाहल ग्रहण करते हैं।

ग्रंथों में ऐसा उल्लेख है प्रह्लाद की वापसी पर हवन कर कलश की स्थापना की थी। जो व्यक्ति घर में पाहल नहीं करते हैं. वे मंदिर में सामूहिक होने वाले पाहल से पवित्र जल लाकर उसे ग्रहण करते हैं।

न पानी न रंग गुलाल
बिश्नोई समाज जल सरंक्षण के लिए पानी में रंग या सूखी गुलाल नहीं उड़ाकर सामा-श्यामा के लिए सफेद कपड़ों में एक-दूसरे के घर जाकर होली की बधाइयां देता है। साथ ही समाजजन अपने गुरु जम्भेश्वर के बताए 120 शब्दों का पाठ कर पवित्र पाहल बनाते हैं। बाद में सभी को जल के रूप में प्रसादी दी जाती है। यह शुद्धिकरण माना जाता है।


बड़ी खबरें

View All

बाड़मेर

राजस्थान न्यूज़

ट्रेंडिंग