
जिले में रायड़े का उत्पादन काफी कम
बाड़मेर. कृषि विज्ञान केन्द्र गुड़ामालानी की ओर से गांव कनाना में प्रथम पंक्ति प्रदर्शन रायड़ा एवं वर्तमान की समसायिक कृषि गतिविधियों पर किसान गोष्ठी हुई।
इस दौरान केन्द्र प्रभारी डॉ. प्रदीप पगारिया ने कहा कि बाड़मेर जिले में लगभग 12000 हैक्टेयर में रायड़े की फसल बोई जाती है जिसकी औसत उत्पादकता 12 से 15 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है, लेकिन यहां पर पानी व मृदा की गुणवता सही नहीं है।
रायड़े का उत्पादन काफी कम है। किसानों के लिए नई फसल का विकल्प नहीं है। ऐसी स्थिति में कृषि विज्ञान केन्द्र की ओर से केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान करनाल हरियाणा द्वारा विकसित सीएस-58 एवं सीएस-60 का प्रथम पंक्ति प्रदर्शन किसानों के साथ मिलकर किसानों के खेत पर प्रथम बार लगाया गया।
जिसका अभी तक आशातीत परिणाम दिख रहा है। साथ ही उन्होंने बताया कि इस किस्म द्वारा क्षारीय मृदा में जहां अभी तक उत्पादन कम हो रहा था वहां इस किस्म द्वारा पैदावार में बढ़ोतरी होगी एवं आने वाले समय में यह किस्म इस जिले के किसानों के लिए वरदान साबित होगी इस किस्म की अवधि 130 से 135 दिन हैं यह किस्म क्षारीय मृदा में अच्छा प्रदर्शन करती है इसकी औसत उपज 18-22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
एवं इसमें तेल की मात्रा 38 से 40 प्रतिशत है। प्रथम पंक्ति प्रदर्शन किटनोद एवं कनाना के 50 काश्तकारों के यहां पर प्रदर्शन लगाया गया। इस अवसर पर कृषि विभाग के सहायक कृषि अधिकारी विजय कुमार जैन ने कृषि विभाग की विभिन्न योजनाओं के साथ ही मृदा में जिप्सम का महत्व पर प्रकाश डालते हुए विस्तार से कृषि संबंधी योजनाओं की जानकारी दी।
केन्द्र के विषय विशेषज्ञ डॉ. लखमाराम चौधरी ने वर्तमान फसलें जीरा, ईसबगोल रायड़ा, गेहूं पर चर्चा करते हुए मौसम में हो रहे बदलाव के कारण पाला पडऩे की संभावना को देखते हुए इसके बचाव के विभिन्न उपाय बताये जिसमें पानी देना, धुंआ करना, सल्फयूरिक एसिड़ का स्प्रे करना आदि है। कृषि पर्यवेक्षक पारलु के गोपाल राम ने तिलहन फसलों में गंधव का महत्व बताया। इस अवसर पर किसानों के खेतों पर लगी हुई रायड़ा की फसल का भ्रमण किया एवं अब तक की वृद्धि को संतोषजनक बताया।
Published on:
19 Dec 2020 07:31 pm
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