
बाड़मेर से हुई थी 5 दिसंबर 1971 की सर्जिकल स्ट्राइक
बाड़मेर पत्रिका.
जिसके पड़ दादा 1937 से 1945 तक सिंध असेंबली के प्रथम सदस्य रहे। दादा सिंध असेंबली के 1953 से 1955 में सदस्य रहे और खुद संसदीय सचिव व राज्यमंत्री रहे उसने 1971 के युद्ध से पहले ही पाकिस्तान छोड़ दिया और भारतीय सेना को जब मदद की जरूरत हुई तो अपने छोटे भाई सहित 13 सदस्यों के साथ छाछरो फतेह की। ब्रिगेडियर भवानीसिंह की एक बटालियन के साथ हुए । उन्होंने छाछरो फतेह करते हुए छाछरो में अपनी ही हवेली पर तिरंगा झंडा लहराकर फक्र किया। उन्हें आज भी अफसोस है कि शिमला समझौता नहीं होता तो आज छाछरो भारत का हिस्सा होता।
पत्रिका के लिए 1971 युद्ध के लड़ाके रहे पूर्व राज्यमंत्री पाकिस्तान लक्ष्मणसिंह सोढ़ा के छोटे भाई पदमसिंह की जुबानी जीत का हाल, पदमसिंह अपने बड़े भाई के साथ इस टुकड़ी में थे और वे एकमात्र व्यक्ति है जो 20 सदस्यीय टुकड़ी में युद्ध लडऩे के बाद अब जिंदा है। तीन पीढिय़ों से हमारा परिवार छाछरो में रह रहा था। पारीवारिक पृष्ठभूमि में पड़दादा से बड़े भाई लक्ष्मणसिंह सोढ़ा ओहदेदार रहे। एक लाख बीस हजार बीघा जमीन के जमींदार थे,लेकिन पाकिस्तान में हालात लगातार बिगड़ रहे थे और पाकिस्तान सरकार ने हिन्दू जमींदार होने के कारण हमारे परिवार को आंख की किरकिरी बना दिया था। फरवरी 1971 में हमारा परिवार चौहटन के बावड़ी कला आ गया। यहां आने के बाद सितंबर-अक्टूबर में ब्रिगेडियर भवानीसिंह ने बड़े भाई से मुलाकात की और उन्होंने युद्ध की स्थिति बताई। इसके लिए 13 सदस्यों को चुना गया। इन तेरह सदस्यों में मैं, मेरे बड़े भाई थे।
हमें अहमदाबाद में सेना की ओर से प्रशिक्षण दिया गया। बावड़ी कला से 60 जांगा गाडिय़ों के साथ 3 दिसम्बर 1971 की रात अड़बलिया-बावड़ी के रास्ते छाछरो जाने की कोशिश की थी, परन्तु गाडिय़ां रात में फंस गई इसलिए बावड़ी कला वापस आना पड़ा, दूसरे दिन 4 दिसम्बर की रात को वापस केलनौर-नावपुरा होते हुए पाकिस्तान में प्रवेश किया
सुबह करीब 4 बजे किता गांव जा पहुंचे जो छाछरो से 7 किलोमीटर ही दूर था, परन्तु छाछरो गांव के पास साइने के धोरे पर पाकिस्तान आर्मी व रेंजर के द्वारा दो तोपे लगाई हुई थी। जिसको 10 पेरा कमाण्डो व हमने दोनों तरफ से घेर लिया जिसमें पाकिस्तान के 8-10 सैनिक मागे गए, परन्तु इस युद्ध के दौरान इंडीयन आर्मी का कोई भी जवान व सिविलियन्स जख्मी भी नहीं हुआ। छाछरो पर विजय प्राप्त करते हुए हम आगे सलाम कोट तक साथ गये वहां से फिर ब्रिगेडियर भवानी सिंह विरावा होते हुए बाखासर के रास्ते सर्जिकल स्ट्राईक को पूरा कर 10वीं पैरा कमाण्डों के साथ भारत लौटे।
ठीक 49 साल पहले ठीक आज के ही दिन छाछरो में तिरंगा लहराया था। भारत की बहादुर सेना की 10वीं पेरा बटालियन ने पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त के छाछरो कस्बे पर विजय पताका फहराई थी। 4 दिसम्बर 1971 की आधी रात के बाद भारत की सेना ने पाकिस्तान के इस क्षेत्र पर कब्जा किया था, लेकिन शिमला समझौते में वार्ता की मेज पर जीता हुआ क्षेत्र फिर से पाकिस्तान की झोली में डाल दिया गया था।
जिंदा या मुर्दा पकडऩे पर ईनाम
लक्ष्मणसिंह सोढ़ा 1971 की भारत पाक युद्ध में हुई ऐतिहासिक छाछरो की लड़ाई में भारतीय पक्ष में थे। भारतीय सेना की मदद करने पर इस परिवार एवं ठाकुर लक्ष्मण सिंह सोढ़ा पर पाकिस्तान सरकार ने जासूसी का आरोप लगाते हुए जिन्दा या मुर्दा पकडऩे पर दो लाख रुपये की ईनाम की घोषणा 1971 में की थी। प्रशंसा पत्र दिए पश्चिमी क्षेत्र के जनरल ओफिसर इन कमांडिंग ले. जनरल पी. सी. नेबूड़ जो बाद में थलसेनाध्यक्ष बने प्रशंसा पत्र दिए।इन्फेन्ट्री डीविजन के ब्रिगेडीयर एड. डी. पर्ब ने सोढ़ा और इनके साथियों की भूमिका की प्रशंसा में प्रमाण पत्र भी दिया।
ये 13 लोग लड़े थे-- लक्षमण सिंह सोढ़ा- गोरधन सिंह सोढ़ा-. चन्दन सिंह सोढ़ा- समर्थसिंह सोढ़ा- पदम सिंह सोढ़ा- पृथ्वी सिंह सोढ़ा-. आम्ब सिंह सोढ़ा-. हुकम सिंह कापराऊ- जुगत सिंह- बच्चू राणा राजपूत-. केशा राणा राजपूत- लाधु भील बीजराड़- पर्वत सिंह सोढ़ा
Published on:
05 Dec 2020 09:47 am
बड़ी खबरें
View Allबाड़मेर
राजस्थान न्यूज़
ट्रेंडिंग
