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गांव की गलियों से निकली कलियां…आज राज्य..कल देश के लिए खेलने को तैयार

बाड़मेर में देशभर के 28 राज्य और 08 केन्द्र शासित प्रदेश से बेटियां बास्केट बॉल खेलने पहुंची है। इनमें से ऐसी कई बेटियांं जो देश के छोटे-छोटे गांव से खेलते हुए अपने राज्य की टीम बनकर आई है और अब वे देश जीतने की ललक लेकर आई है। खुशखबरी तो इनमें से उन बेटियों की होगी जो यहां से देश की टीम बनेगी और फिर पहुंचेगी विदेश..भारत भाग्य विधाता बनकर। तिरंगा हाथ में लेकर। छोटे गांव के इन बेटियों से पत्रिका की खास मुलाकात।

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गांव की गलियों से निकली कलियां...आज राज्य..कल देश के लिए खेलने को तैयार

बाड़मेर. तैयारी करती बेटियां।

बाड़मेर.
हरियाणा के नंदगढ़ झिंड की बंसिका के पिता किसान है। तीसरी बार राष्ट्रीय स्तर पर खेलने आई बंसिका ने बचपन से प्यार किया बॉस्केट के ग्राउण्ड से। बेटी है खेलेगी क्या,सवाल था? जवाब किसान पिता ने कहा, क्यूं ना..हरियाणा की बेटी है। आज जब उसे बाड़मेर मेें तीसरी बार नेशनल खेलने के लिए विदा किया तो सवाल करने वाले चेहरे ही कह रहे थे जीत कर आइयो..गांव का नाम रोशन होगा। छारा झज्झर से आई सिमरन के पिता ड्राइवर है लेकिन उन्होंने बेटी को सपने पालने और आगे बढऩे का अवसर दिया। अण्डर 14 में तीसरा नेशनल खेलकर देश की टीम में शामिल होने का हौैंसला रखने वाली सिमरन कहती है, परिस्थितियां से पिता लड़े हैै मैं तो केवल उनका सपना अपने अंदर जीकर खेल रही हूं। बिहार के मरची गांव की आयुषीकुमारी के किसान पिता संतोषकुमारी कहती है कि प्रेक्टिस की प्रॉब्लम देखी। सुविधाएं भी कमतर थी लेकिन कभी खेल से समझौता नहीं किया। पिता ने बास्केट हाथ में देने के साथ कहा था,मेहनत करना..बाकि बातों पर ध्यान मत देना। बस, इसी ध्येय ने मुझे आगे बढ़ाया है।
जुड़वा भाई-बहिन, बेटी खेल रही
पंजाब की सुखमन कौर का परिवार तो मानो पूरे देश को संदेश दे रहा हे। सुखमन ट्वींस बेबी(जुड़वा) है। भाई-बहिन दोनों में से बेटी ने जब खेलना शुरू किया तो पिता ने बिना किसी भेदभाव के उसे खेलने को भेजना शुरू किया। नेशनल खेलने आई सुखमन कहती हैै मेरी बड़ी ***** खुशप्रीत भी नेशनल प्लेयर है। हमारे मां-बाप ने बेटियों में कोई भेद नहीं किया। उसकी सहेली कोमल प्रीतकोर भी कहती है भाई-बहिन के रिश्ते में बराबरी पंजाब के माहौल में है, हमें अच्छा लगता है। इसी तरह चण्डीगढ़ृ से आई जीया सोढ़ी भी जुड़वा है। दोनों बहिनें है। व्यवसाय कर रहे पिता ने बेटी को अंगुली पकड़ कर खेल मैदान में भेजा और अब वह राज्य की टीम में है।
रेगिस्तान की बेटियां
बाड़मेर के दानजी की होदी की मुकुट सोढ़ा और जिगिसा रेगिस्तान की बेटियां है। बाड़मेर के ठेट गांव में बास्केट की सुविधा नहीं है लेकिन शहर में यहां बेहतर स्थितियां है। शिक्षक पिता ने बेटी को बास्केट के मैदान में उतारा और उसको प्रशिक्षण दिया। नरपतसिंह की बेटी अब राजस्थान की टीम से है और पहला नेशनल खेलेगी। नरपतङ्क्षसह कहते है बाड़मेर-जैसलमेर में बेटियों को आगे बढ़ाया जाए तो ये किसी से कम नहीं।
भारत भाग्य विधाता
तमिलनाडु की स्मीथा एस, इरोड की थनिस्का मुथुपुरिया, महाराष्ट्र की राजन्या सरकार, कोयम्बटूर की थारानी एमआइ, बिहार के छोटे से गांव मझौली की अंजली सहित देशभर के 29 राज्यों और 06 केन्द्र शासित प्रदेश से आई ये बेटियां एक साथ बाड़मेर में अपने-अपने राज्य की जर्सी पहनकर निकलती है तो लगता है कि ये बेटियां भारत भाग्य विधाता है।