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नेट में देशभर में अव्वल रहे शोभाराम, मातापिता ने कर्ज लेकर पढ़ाया, किताबें खरीदने दोस्तों ने दिए पैसे

सेंधवा के होनहार दिव्यांग विद्यार्थी ने रचा इतिहास, कभी नहीं लिया कोचिंग का सहारा, 10 साल कड़ी मेहनत के बाद दिव्यांग शोभाराम को नेट परीक्षा के दिव्यांग कोटे में मिली ऑल इंडिया में प्रथम रैंक

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सेंधवा. नगर के एक होनहार दिव्यांग विद्यार्थी ने नेट परीक्षा में इतिहास रचते हुए सेंधवा शहर के साथ बड़वानी जिले का नाम पूरे देश में रोशन कर दिया है। शहर के शोभाराम रावत ने नेशनल एलिजिबिलिटी टेस्ट परीक्षा में दिव्यांग कोटे में ऑल इंडिया प्रथम रैंक हासिल की है। 10 साल के लगातार संघर्ष के बाद सफलता मिलने की उनकी कहानी सभी आदिवासी व दिव्यांग विद्यार्थियों के अलावा अन्य लोगों के लिए भी मिसाल बन गई है।

ऑल इंडिया टॉपर शोभाराम ने पत्रिका को बताया कि वर्ष 2012 में हायर सेकंडरी परीक्षा पास करने के बाद वे सेंधवा आए थे। तब से लगातार संघर्ष करते हुए सिर्फ सफल होने के लिए लक्ष्य निर्धारित किए और उसका परिणाम अब मिल चुका है। पिछले 10 वर्षों में संघर्ष की अनूठी मिसाल पेश करते हुए शोभाराम नेशनल एलिजिबिलिटी टेस्ट के दिव्यांग कोटे में 73 प्रतिशत अंक हासिल कर ऑल इंडिया टॉपर रहे हैं। बड़ी बात यह है कि पढ़ाई के दौरान शोभाराम ने कभी कोचिंग का सहारा नहीं लिया।

लकड़ी के सहारे 3 किमी पैदल चल पहुंचते थे कॉलेज
शोभाराम रावत ने संघर्ष के दिन याद करते हुए बताया कि जब सेंधवा कॉलेज में एडमिशन लिया तो अपने गांव पाड़छा से लंगडीमोहडी तक करीब 2 किमी रास्ते लकड़ी के साथ पैदल आते थे। यहां से बस में बैठकर सेंधवा नया बस स्टैंड और फिर वहां से करीब 1 किमी दूर शासकीय पीजी कॉलेज तक पैदल ही सफर करते थे। जब कभी लिफ्ट मिल जाती थी तो सहूलियत होती थी नहीं तो पैसा बचाने के लिए पैदल ही चलते थे।

शोभाराम ने बताया कि सफलता के लिए खूब मेहनत की है लेकिन मेरी सफलता के पीछे मातापिता और छोटे भाई सुनील रावत की जिद रही। मातापिता और भाई ने कर्ज लेकर और मजदूरी कर मेरी पढ़ाई की जरूरी आवश्यकता को पूरा किया। कभी भी कोई कमी नहीं आने दी। मुझे कभी ये नहीं बताया कि हम पैसा कहां से लाए है। परिजनों का संघर्ष सफलता का मुख्य कारण है। इसके अतिरिक्त प्रो. मोतीलाल आवाया, राजेंद्र निकुम, आरक्षक बलिराम करते, दोस्त ग्यारसीलाल वास्कले, अशोक वास्कले और बहन वानु पति सुरेश द्वारा हमेशा सहयोग दिया गया। मेरी दिव्यांगता को कमजोरी ना बनाते हुए मुझे हमेशा प्रोत्साहित किया।