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मास्टर आदित्येन्द्र निर्धन बच्चों की पढ़ाई में लगाते थे वेतन की आधी धनराशि, पूरे परिवार ने ही लड़ी आजादी की लड़ाई

दे दी हमें आजादी: वर्ष 1932 से 1942 तक उन्होंने स्वतंत्रता के संघर्ष में भूमिका अदा की, आन्दोलन का नेतृत्व किया तथा कई बार जेल गए। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वे मत्स्य प्रदेश एवं वृहद प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बने तथा राजस्थान और मध्य भारत का प्रतिनिधित्व किया।

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मास्टर आदित्येन्द्र, भरतपुर (1907-1999) फोटो: पत्रिका

Master Adityendra Life Story: मास्टर आदित्येन्द्र सरलता, सहजता, सादगी, समरसता के साथ कर्मठता की प्रतिमूर्ति थे। लोहागढ़ के इस सपूत ने आजादी की लड़ाई में एक मशाल जलाकर मिसाल पेश की।

आदित्येन्द्र के पौत्र भरतपुर व्यापार महासंघ के जिलाध्यक्ष संजीव गुुप्ता ने बताया कि इनका जन्म भरतपुर जिले के ग्राम थून में 24 जून 1907 को हुआ। हाई स्कूल में उन्होंने एक समर्पित आदर्श शिक्षक के रूप में कार्य किया, वे अपने वेतन की आधी धन राशि निर्धन छात्रों की पढ़ाई पर व्यय करते हुए अपने घर पर भी बच्चों को नि:शुल्क पढ़ाते थे।

उन्होंने 1961 से 1977 (16 वर्ष) तक प्रतिपक्ष में रहकर जनता की आवाज बुलन्द की। इसी अवधि में 1967 में वे विधायक बने। वर्ष 1975 में आपातकाल लागू होने पर बाबू जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर वे 19 माह तक जेल में रहे। आपातकाल समाप्ति के बाद हुए विधानसभा चुनावों में फिर से वे विधायक बने।

भरतपुर में हुए 3 प्रमुख आन्दोलन

भरतपुर जिले में वर्ष 1939 का सत्याग्रह आन्दोलन 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन तथा 1947 का स्वतंत्रता प्राप्ति व बेगार विरोधी आन्दोलन आन्दोलन मास्टर आदित्येन्द्र के नेतृत्व में हुए। सरकार इन प्रयासों को कुचलना चाहती थी। 11 मई 1939 को सत्याग्रह आन्दोलन की शुरुआत शहर के लक्ष्मण मन्दिर से हुई। गिरफ्तारियों का तांता लग गया। कुछ को डंडे मारकर छोड़ दिया। कुछ को कठोर कारावास की सजा दी गई।

मास्टर आदित्येन्द्र पूरे परिवार के साथ आज़ादी की लड़ाई में कूद पड़े। जेल की कठोर यातना सहनी पड़ी।

  • संजीव गुप्ता, पौत्र