
13वीं शताब्दी में बने देवबलौदा के प्राचीन शिव मंदिर में बुधवार को बड़ी संया में भगवान शिव की पूजा अर्चना करने हजारों भक्त पहुंचें।

नवरंग मंडप नागर शैली में बना देवबलौदा का प्राचीन शिव मंदिर अपने आप में खास है। कल्चुरी राजाओं ने 13वीं शताब्दी में मंदिर का निर्माण करवाया था।

रायपुर और दुर्ग से इसकी दूरी बराबर 18-18 किलोमीटर है। यह मंदिर चरोदा के रेल लाइन के किनारे बसा है। देवबलौदा गांव का यह ऐतिहासिक मंदिर कई रहस्यों को साथ लिए हुए है।

मंदिर के अंदर करीब तीन फीट नीचे गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग और मंदिर के बाहर बने कुंड को लेकर प्रचलित लोक कथाओं के बीच यह मंदिर अपने आप में खास है।

मंदिर को बनाने वाला शिल्पी इसे अधूरा छोड़कर ही चला गया था। इस वजह से गुंबद नहीं बन पाया।

महाशिवरात्रि के दौरान मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं, जब आस-पास के गांवों से भक्त भगवान शिव का आशीर्वाद लेने के लिए यहां आते हैं।

स्थानीय लोगों का मानना है कि कुंड के अंदर एक गुप्त सुरंग है जो आरंग में एक मंदिर तक जाती है। जिस मूर्तिकार ने छलांग लगाई, उसने सुरंग ढूंढ ली और आंग पहुंच गया जहां वह पत्थर बन गया।