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आखिर क्यों, दो साल में कलेक्टर भी नहीं दौड़ा पाए शहर में इन 6 सिटी बसों को

राज्य शासन ने जनता को सस्ते दर पर परिवहन सुविधा मुहैया कराने के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च कर सिटी बसों की खरीदी की है।

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भिलाई

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Dakshi Sahu

Dec 28, 2017

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भिलाई. राज्य शासन ने जनता को सस्ते दर पर परिवहन सुविधा मुहैया कराने के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च कर सिटी बसों की खरीदी की है। इन बसों के संचालन के लिए दुर्ग-भिलाई अरबन पब्लिक ट्रांसपोर्ट सोसाइटी (डीबीयूपीटीएस) बनाई गई है। विडंबना है कि कलेक्टर की अध्यक्षता वाली यह सोसाइटी खरीदी गई बसों को रूटों पर दौड़ा नहीं पा रही है।

स्थिति यह है कि भिलाई के सुपेला बस स्टैंड में दो साल से ६ सिटी बसें बेकार खड़ी हैं। इन बसों के कलपुर्जे खराब हो रहे हैं। कंपनी की ओर से दी गई वारंटी पीरियड भी खत्म हो गई है। इन्हे रूटों में दौड़ाया नहीं गया तो ये कबाड़ में तब्दील हो जाएंगे। इन बसों की खस्ता हालत को लेकर जिम्मेदार अफसर गंभीरता दिखा रहे हैं और न ही जनप्रतिनिधियों ने कभी सवाल खड़े किए।

राज्य शासन ने लोगों को सस्ती परिवहन सुविधा देने के लिए ७० नग सिटी बसों की खरीदी की थी। इनमें से ६४ सिटी बसों को दुर्ग-भिलाई, जामुल, कुम्हारी, अहिवारा सहित आसपास के क्षेत्र में चलाया जा रहा है, लेकिन कलेक्टर की अध्यक्षता वाली दुर्ग-भिलाई अरबन पब्लिक ट्रांसपोर्ट सोसाइटी (डीबीयूपीटीएस) अब तक ६ मिनी बसों को चलाने के लिए परमिट नहीं ले पाई है।

समिति पिछले दो साल से परमिट मिलने के बाद चलाने का दावा करती आ रही है। परमिट कब मिलेगा? इसका कोई जवाब नहीं है। परमिट नहीं मिलने के कारण पिछले जून २०१५ से बसें सुपेला बस स्टैंड पर खड़ी हंै। लंबे समय से एक ही स्थान पर बेकार खड़े होने से ऑटोमेटिक तकनीक वाली सिटी बस के स्लाडिंग डोर, ग्लास, सेल्फ, बेयरिंग, बैटरी, क्लच सहित कई अन्य पाट्र्स में तकनीकी खराबी आने लगी है। दरवाजा जाम हो गए हैं। धूूल, धूप और बारिश के कारण प्लास्टिक बॉडी की शाइनिंग भी खराब हो गई है।

लोगों की सुविधा के लिए सिटी बसें खरीदी गई हैं, लेकिन ये शो पीस बने हुए हंै। एजेंसी ने परमिट नहीं मिलने की वजह से सिटी बसों को स्टैंड में खड़े कर दिया है। जबकि जिस समिति के अधीन सिटी बसों का संचालन हो रहा है उसके अध्यक्ष स्वयं कलक्टर हैं। निगम के कमिश्नर केएल चौहान सचिव हंै। बसों को संचालन की अनुमति देने वाले क्षेत्रीय परिवहन आयुक्त श्रीकांत वर्मा समिति के सदस्य हंै।

प्रशासन के अधिकारियों की समिति में होने केबावजूद लोगों की गाढ़ी कमाई से खरीदी गई बसों को परमिट के लिए दो साल तक खड़े रखना, आखिर कहां की समझदारी है। निजी बस मालिक और ऑटो को आसानी से परमिट दे रहे हैं। लोग बसें चला भी रहे हैं, लेकिन शासन की सिटी बस को परमिट के लिए इंतजार करना पड़ रहा है, तो इसके लिए जिम्मेदार कौन है?

संचालक, संचालनालय परिवहन विभाग ओपी पाल ने बताया कि सिटी बसों के परमिट के संबंध में मुझे जानकारी नहीं है। संचालनालय परिवहन वाले ही इस बारे में बता सकते हैं। आयुक्त संचालनालय परिवहन विभाग पुलक भटï्टाचार्य ने बताया कि सिटी बसों के परमिट को लेकर वास्तविक स्थिति क्या है। इस संबंध में फाइल देखने के बाद ही बता पाऊंगा। नोडल अधिकारी सूडा ने बताया कि यूएस अग्रवाल ने बताया कि इस प्रोजेक्ट के बारे में भिलाई निगम के नोडल अधिकारी बता सकते हैं। प्रोजेक्ट मेरे पास नहीं है।

हम और आप जो टैक्स के रूप में राशि आयकर विभाग सहित अन्य विभागों में देते हैं। वह शासन के कोष में जमा होता है। शासन इन्हीं राशि को योजनाओं पर खर्च करती है। भारत सरकार ने २०१३ में लोगों को सस्ती परिवहन सुविधा देने के लिए सिटी बस परियोजना तैयार की थी। दुर्ग-भिलाई निगम क्षेत्र के लिए ११० बसें खरीदने का निर्णय लिया गया था। बाद में शासन ने ४० एसी बसों के प्रस्ताव को कैंसिल कर दिया है। नॉन एसी स्टैंडर्ड और मिनी सहित ७० बसें खरीदी गई। जिसे २६ मई २०१५ को तात्कालीन केन्द्रीय मंत्री एम वैकेंया नायडू ने लोकार्पण किया था।