
भिलाई. बीएसएफ के महला कैंप में वैमी भी माओवादियों से लोहा लेने के लिए हर समय तैयार रहती है। वह घटना से पहले ही सूचित कर देती है। तीन माह पहले महला कैंप में आई वैमी बेल्जियम शेफर्ड नस्ल की डॉगी है। मैटल डिटेक्टर का काम सिर्फ मेटल के बारे में बताता है। लेकिन मेटल में क्या है यह नहीं बता पाता, जबकि वैमी गजब की सूंघने की क्षमता से उसकी भी जानकारी दे दी है।
वैमी की ट्रेनिंग एनटीसीडी टेकनपुर से हुई है। इस नस्ल के डॉग बहुत ही फुर्तीले होते हंै। ये सूंघ कर पता लगाने में माहिर होते हैं। किसी दुश्मन पर हमला करने पर भी यह पीछे नहीं हटते हैं। राहुल कुमार वैमी के डॉग हैंडलर हैं। राहुल कुमार ने बताया फोर्स में डॉग का नाम बहुत छोटा रखा जाता है। जिससे वह अपना नाम जल्दी पहचान ले। डाग को निर्देश भी बहुत छोटे शब्दों में दिया जाता है, जिससे जल्दी समझ कर काम करें।
दहशत से गांव छोड़कर चले गए थे ग्रामीण
दहशत से महला के ग्रामीण गांव छोड़कर पखांजूर और दूसरी जगहों पर चले गए थे। इस साल फरवरी में जब बीएसफ का कैम्प बना तो गांव में लोग वापस आ रहे हैं। बीएसएफ की बहादुरी और जनता का भरोसा जीतने के कारण महला गांव में लोग आना शुरू कर दिए हैं। उजड़ चुका गांव एक बार फिर बस रहा है।
ग्रामीण बताते हैं कि उनमें डर था लेकिन भरोसा नहीं। अब प्रतापपुर थाने और महला गांव के बीच में सड़क बन जाएगी तब गांव में विकास की राह आसान होगी। बस्तर में बीएसएफ २०१० के शुरूआत में आई। माओवादियों के फरमान पर इसका विरोध भी हुआ। सहयोग करने वालों को मारा गया। लेकिन बीएसएफ कैम्प खुलने के बाद हालात सुधरे हैं।
फोर्स की बदौलत भानुप्रतापपुर में रेलवे लाइन बिछी, सुरक्षा मिलने पर टे्रन भी शुरू हुई। बटालियन के जंगल वाले इलाके में कैम्प से माओवादियों का इस क्षेत्र में प्रभाव भी कम हो गया। ३० गांवों में कपड़े, बच्चों को स्कूल का समान, 25 आदिवासी लड़कियों को सिलाई मशीन दी है। बीेएसफ इस इलाके में सिलाई कड़ाई, कम्प्यूटर का प्रशिक्षण भी समय-समय पर गांव के युवक - युवतियों को देता है। जिससे आगे चलकर वो अपने पैरों पर खड़े हो रहे हैं।
प्रतापपुर और महला गांव के रोड का टेंडर कई बार हुआ पर अभी तक नहीं बनी है। इसका काम अब फिर शुरू हुआ है, जो बीएसएफ की सुरक्षा में बनेगी। फोर्स जितना अंदर जा रही है। वहां पर विकास हो रहा है। फोर्स आम जनता का दिल जितने में कामयाब रही है। यही वजहे है कि नक्सली जगह छोड़ रहे हैं।
अपने आप को अबुझमाड़ के जंगल में और पुराने जगहों पर स्थापित करने की सोच रहे हंै। इसमें अपने आप को नाकाम भी पा रहें हैं और बौखला कर ऐसे कदम उठा रहे हैं। आने वाले समय में नक्सली और ज्यादा आत्मसमर्पण करेंगे। इससे वह कोई बड़ा और हमला कर सकते हैं। अब जवानों को और चौकन्ना रहने की जरूरत है।
Published on:
28 Apr 2018 03:46 pm
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