सालभर करते हैं तैयारी
जयंती स्टेडियम में कोच विनोद नायर स्कूल और कॉलेज के छात्रों को सालभर एथलेटिक्स की कई विधाओं के साथ-साथ सेना भर्ती की तैयारी भी कराते हैं। हाल ही में एसएएफ में चल रही भर्ती में 30 से ज्यादा युवाओं ने फिजिकल टेस्ट पास कर लिया है। उन्होंने कहा कि अगर वे लिखित परीक्षा में थोड़ी मेहनत कर लेंगे तो उनकी नौकरी आसानी से लग जाएगी। जिसके बाद वे अपने खेल को और निखार सकेंगे।
बिना डाइट के दी कोचिंग
कोच विनोद बताते हैं कि वे कुछ साल पहले टंकी मरोदा के शासकीय उमा शाला में पीटीआई थे। उन दिनों यह सब युवा स्कूल में पढ़ते थे। वे वहां बच्चों को एथलेटिक्स की तैयारी कराते थे। तभी एक -एक कर यह सभी छात्र उनके पास पहुंचे। पर इसमें से अधिकांश अंडर वेट थे। ना तो उनके घर में बेहतर डाइट का इंतजाम था और ना ही वे अपने पर कुछ खर्च करने सक्षम थे। जब इनकी ट्रेनिंग शुरू हुई तो वे खुद भी असंजस में थे कि वे उन्हें ट्रेनिंग कैसे दें। क्योंकि एथलेटिक्स की ट्रेनिंग के दौरान शरीर को अच्छे भोजन की जरूरत होती है जो उनके पास नहीं था। पर वे मेहनत को तैयार थे तो उन्होंने भी ट्रेनिंग शुरू की। खेल के साथ ही उन्होंने उन सभी को सबसे पहले नौकरी पाने का टारगेट दिया ताकि उनके परिवार की जिंदगी सुधर जाए।
मरोदा निवासी लक्ष्मण साहू 7 साल से आर्मी में है। इसकी शुरुआत भी मरोदा स्कूल से ही हुई शारीरिक रूप से कमजोर लक्ष्मण को कोचिंग देने में भी कोच डरते थे पर उसके जुनून को देख कोच ने उसे 5 और 10 किलोमीटर दौड़ के लिए तैयार किया। राष्ट्रीय स्तर पर पदक प्राप्त करने वाले लक्ष्मण अब अपने मजदूर पिता जगतराम का सहारा बन चुका है।
दोनों भाई ने साथ की तैयारी
रिक्शा चलाने वाले पिता को देख नाकेश और तामेश्वर अक्सर दुखी रहते थे। नेवई बस्ती के इन दोनों भाईयों ने कोच से बात की और एथलेटिक्स में कमद रखा। 8 सौ मीटर और 15 सौ मीटर दौड़ में 18 बार पदक ले चुके नाकेश का चयन आर्मी में हो गया। पर छोटे भाई तामेश्वर को छत्तीसगढ़ आम्र्स फोर्स में पहले नौकरी मिल गई। दोनों भाई अब नौकरी पर हैं और पिता अब रिक्शा से कार ड्राइवर बन गए। नाकेश बताता है कि स्कूल के दिनों में दोनों भाई के लिए डाइट का इंतजाम करना पिता के लिए मुश्किल होता था। तब उन्हें पता चला कि पदक जीतने से पैसे मिलते हैं तो वे पदक जीतने में जान लगा देते ताकि कुछ दिनों के लिए ही सही पर वे शरीर को मजबूत करने कुछ अच्छा खा सकें।
आर्मी में पाई नौकरी
ठेका मजदूर गुलाब चंद देशमुख का बेटे राहुल की कहानी भी कुछ अलग नहीं है। आठवीं में था तो पहली बार ग्राउंड से जुड़ा। चार साल की मेहनत ने उसे हडल्र्स और ट्रीपल जंप में चैम्पियन बना दिया। फिर क्या था इस खेलके साथ ही सेना में भर्ती की तैयार भी साथ-साथ चलती रही और मौका मिलते ही उसे आर्मी में ट्रायल दिया और उसका सलेक्शन हो गया।