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National Doctor’s Day: एक ने 789 मरीजों से सिर्फ बातें करके दिया जीवनदान, तो दूसरे ने गरीबों का मुफ्त में किया इलाज…

National Doctor's Day: भिलाई में एक ऐसा डॉक्टर सामने आया, जिसने कोविड से गंभीर प्रभावित मरीजों में जीने की इच्छा जगाई। आज डॉक्टर्स-डे मौके पर हम बात कर रहे हैं।

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National Doctor's Day

National Doctor's Day: साल 2021 का कोरोना काल शायद ही कोई भूल पाए। हर तरफ अफरा-तफरी का माहौल। मरीजों से खचाखच भरे अस्पताल। खौफ ऐसा कि आंखों के सामने अंधेरा छा जाए। उस दौर में भिलाई में एक ऐसा डॉक्टर सामने आया, जिसने कोविड से गंभीर प्रभावित मरीजों में जीने की इच्छा जगाई। आज डॉक्टर्स-डे मौके पर हम बात कर रहे हैं।

शहर के सुप्रसिद्ध एमडी मेडिसिन डॉ. सुधीर गांगेय की, जिन्होंने कोविड काल में अपने घर से ही मरीजों की ऑनलाइन काउंसलिंग करके 800 मरीजों को जीवनदान दिया। कोविडकाल में जब पूरा शहर घबराहट में थी, तब डॉक्टर गांगेय ने रात के दो बजे भी आए फोन को उतनी ही मुस्तैदी से उठाया और बिना चिड़चिड़ाहट मदद की। डॉ. गांगेय के पास आज भी उन 800 मरीजों को भेजा गया प्रीस्क्रिप्शन मौजूद है, जिसे वे देखभर भावुक हो उठते हैं।

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बीमारी का आधा इलाज है सांत्वना

डॉ. गांगेय का कहना है कि डॉक्टरों को मरीज की बात सुननी चाहिए, ऐसा इसलिए क्योंकि दवाईयों से पहले सांत्वना असरदार साबित होती है। सांत्वना बीमार को हौसला देती है कि सब कुछ ठीक हो जाएगा। कोविड के समय में आए उन 800 मरीजों में से सिर्फ 798 उसी सांत्वना और फिर दवाइयों की वजह से दुरुस्त हुए। इतने मरीजों में से सिर्फ दो गंभीर पेशेंट को नहीं बचाया जा सका।

कोविडकाल में हर एक पेशेंट से वीडियोकॉल पर बात करने का निर्णय लिया ताकि मरीज के चेहरो को पढ़कर उनका मनोबल बढ़ाया जाए और उनमें इस महामारी से लड़ने की ताकत पैदा हो। इस काल में मैंने एक ही बात सीखी है कि किसी भी बीमारी का आधा इलाज सांत्वना कर सकती है।

दरअसल, कुदरत ने हमारे दिमाग की प्रोग्रामिंग इस तरह से की है कि दिमाग सांत्वनाभरे चंद बोल से ही दिमाग मर्ज को ठीक करने में जुट जाता है। डॉ. गांगेय इसलिए भी खास हैं क्योंकि उन्होंने कोविड कॉल में जितने भी पेशेंट को जीवनदान दिया, उनसे एक रुपए की भी फीस नहीं ली।

जब कैंसर पेशेंट की बढ़ा दी उम्र

डॉ गांगेय ने पत्रिका से एक किस्सा शेयर करते हुए बताया कि कुछ साल पहले की बात है जब एक दिन शहीद कौशल यादव के पिता का केस मेरा पास आया। उन्हें आंत का कैंसर था। मैंने उनके परिजनों से सबसे पहले पूछा, क्या आपने उन्हें इसके बारे में बता दिया है? परिजनों से मशवरा कर हमने तय किया कि अभी इन्हें कुछ भी नहीं बताएंगे। हमने कौशल यादव के पिता से मिलकर कहा कि उनके पेट में अलसर हो गया है, जिसे कीमो थेरेपी के जरिए ठीक किया जाएगा। भले ही उन्हें लास्ट स्टेज का कैंसर था लेकिन हमने मरीज को अल्सर बताते हुए ट्रीटमेंट शुरू किया।

एक तरफ जहां बड़े अस्पताल उन्हें जवाब दे चुके थे, वहीं मनोबल और सांत्वना की वजह से वही मरीज दो साल तक बिना किसी परेशानी से जीवित रहा। अपने घर का छोटा मोटा काम करने लगा। स्कूटर चलाकर मार्केट जाकर वही मरीज सब्जी लाया करता था। एक सही निर्णय ने गंभीर बीमारी से जुझ रहे उस मरीज की उम्र दो साल बढ़ा दी। उसी दिन सांत्वना और मनोबल का असल मतलब समझ में आया।

ची चा भिलाई आयुर्वेदिक अस्पताल में चिकित्सक पवन नागरे ड्यूटी करते हैं। अस्पताल से घर लौटने के बाद वे देर शाम तक गांव के आसपास रहने वाले लोगों को आने पर मुफ्त में देखकर दवा देते हैं। जिस वक्त कोरोना व डेंगू के मरीज जिला में एकाएक बढ़ गए थे, तब वे देर रात तक लोगों को इसके बचाव के लिए किस तरह से खानपान करना है। काढ़ा का कैसे इस्तेमाल करना है। वह सारी जानकारी व उसका पैकेट भी दे रहे थे।

सेवा करना पहली प्राथमिकता

डॉक्टर पवन नागरे ने बताया कि सेवा करना पहली प्राथमिकता है। कोरोनाकाल में आसपास का हर व्यक्तिचाहता था कि कोरोना से बचाव के लिए उपाय करें। तब उनको काढ़ा बनाकर पीने की सलाह और पैकेट भी दे रहे थे। वर्तमान में भी लोग पोलसाय पारा, दुर्ग में तबीयत खराब होने पर दवा के लिए आ जाते हैं। डॉ. नागरे का कहना है कि उनको बिना किसी फीस के देखता हूं और मुफ्त में ही दवा देता हूं।