25 दिसंबर 2025,

गुरुवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

भीलवाड़ा में दर्दनाक हादसे: कई परिवारों को गहरे जख्म, कहीं कमाऊ पूत गया तो कहीं मां बेटे-बहू-पोते की लौटने की आस थामे बैठी

भीलवाड़ा जिले में दर्दनाक सड़क हादसों ने कई परिवारों की खुशियां छीन लीं। कहीं मां-पत्नी ने कमाऊ पूत खोया, तो कहीं मां आज भी बेटे-बहू-पोते की राह तक रही है। कुछ ने जीवनसाथी गंवाया, तो कुछ का पूरा परिवार बिखर गया। हादसों के सालों बाद भी घरों में दर्द और इंतजार बाकी है।

4 min read
Google source verification
Bhilwara

मृतक (फोटो- पत्रिका)

भीलवाड़ा: सड़कों पर दौड़ता एक तेज रफ्तार पहिया, एक पल में एक हंसते-खेलते परिवार की खुशियों का काल बन गया। उस मनहूस सड़क दुर्घटना ने मानों कुदरत की क्रूर नियति का पैगाम दिया हो।

भीलवाड़ा जिले के एक नहीं कई परिवारों को ऐसे हादसों ने गहरे जख्म दिए हैं। घर का जो आंगन कल तक खुशियों के बीच ठहाकों से गूंजता था, आज वहां सिर्फ असहनीय दर्द पसरा है। हादसों ने किसी परिवार का मुखिया, तो किसी का कमाऊ पूत छीना लिया।

वक्त के थपेड़ों ने परिवार को हिलाकर रख दिया, पर धीरे-धीरे उसी वक्त ने उन्हें हिम्मत भी दी। आज, परिवार संभल रहा पर उनकी कमी कचोटती है। राजस्थान पत्रिका ने विश्व स्मरण दिवस पर रविवार को जिले के कुछ ऐसे ही परिवारों को दर्द को समझा, जिनके साथ नियति ने क्रूर मजाक कर जिंदगी भर का दर्द दिया।

काश! उसे ऑटो में नहीं बैठाता तो शायद जान बच जाती

भरा पूरा वह आशियाना, जहां हमेशा चहल-पहल और रौनक रहती थी, आज बिल्कुल वीरान हो गया है। हादसे ने परिवार की खुशियों पर ग्रहण लगा दिया। तीन बेटियों की शादी कर उन्हें विदा करने वाली मां को क्या पता था कि काल की क्रूर नियति उसकी भी अंतिम विदाई का इंतजार कर रही है।

यह दर्द भरी कहानी है, हलेड़ निवासी कैलाश सुवालका की। वह बताते हैं कि 24 नवंबर 2022 का वह काला दिन, जिसे मैं अपनी अंतिम सांस तक नहीं भुला पाऊंगा। मैं और मेरी पत्नी सुगना देवी शहर से हलेड जाने के लिए निकले थे। बड़ला चौराहे पर गांव जाते ऑटो को देखकर मेरी पत्नी ने कहा कि आप मुझे यहीं छोड़ दो मैं ऑटो से चली जाऊंगी।

मैंने उसे बोला कि मैं बाइक से गांव ही छोड़ देता हूं, लेकिन वह बोली कि आप दुकान जाओ मैं चली जाऊंगी। 15-20 मिनट बाद ही परिचित का फोन आया कि हलेड चौराहे पर बजरी के ट्रैक्टर से सुगना का एक्सीडेंट हो गया है।

अनहोनी की आशंका से पूरा शरीर कांप गया। उसे एमजीएच लाया गया, तब तक बहुत देर हो गई। जीवन संगिनी मुझे हमेशा के लिए छोड़कर चली गई। उसके बिना आज हमारा घर वीरान है। हर सुख-दुख में हौसला देने वाली जीवन संगिनी के जाने के बाद कैलाश टूट चुके हैं।

कैलाश का कहना है कि आज भी घर का दरवाजा खोलते ही ऐसा लगता की वह हंसते हुए मुझे आवाज दे रही है। हादसे वाले उसी चौराहे से गुजरता हूं तो, उसकी याद में मेरी आंखें भर आती हैं। अपनी तीन बेटियों और एक छोटे बेटे को छोड़कर दुनिया से चली गई।

'आज भी मनोज की याद में आंखें रो पड़ती हैं'

आकोला कस्बे के निकटवर्ती गेता पारोली निवासी मनोज कुमार बांगड़ की राजकीय ड्यूटी पर जाते समय भीलवाड़ा में तेज सिंह सर्कल के पास तेज रफ्तार से आ रहे ट्रक की चपेट में आने से मृत्यु हो गई। हृदय विदारक घटना का समाचार इसकी मां राधा देवी, पत्नी व तीन पुत्रियां, एक भाई वह दो बहनों को मिला।

जैसे मानो उनके ऊपर पहाड़ टूट गया हो। घटना ने खुशहाल परिवार को पूरी तरह से तोड़ दिया। परिजनों के अश्रुधारा आज भी कई मौकों पर बह उठती है। जब भी ऐसे हादसों के बारे में मां सुनती है तो सिहर उठती है।

मां की आज भी आंखें नम, बेटे-बहू व पोते का कर रही इंतजार

जहाजपुर क्षेत्र के पीपलूंद निवासी त्रिलोकचंद तेली (35) ससुराल पक्ष में पारिवारिक कार्यक्रम होने से 11 मई 2018 को पूरे परिवार के साथ कपड़ों की खरीदारी करने के लिए कार लेकर जहाजपुर के लिए रवाना हुए। तभी अनियंत्रित ट्रेलर ने कार को जोरदार टक्कर मार दी। हादसे में त्रिलोक के साथ उनकी पत्नी दुर्गा, पुत्र अभिषेक (12) व त्रिलोक के ससुर भूरा तेली की मौत हो गई।

हादसे को सात साल हो गए, लेकिन त्रिलोक की मां रतनी देवी के आंसू आज भी नहीं सूखे हैं। उसे अपने बेटे, बहू व पोते का इंतजार है। वह बताती हैं कि पिता की मृत्यु के बाद परिवार के भरण-पोषण की जिमेदारी त्रिलोक के कंधों पर थी। बेटा परिवार में मां, दो बहन, छोटा भाई, पत्नी सहित एक बेटा और एक बेटी को संभाले हुए था।

हादसे के वक्त मकान का निर्माण कार्य चल रहा था। बोलकर गया कि एक घंटे में आ रहा हूं, तब तक कारीगर व मजदूरों को चाय दे देना, त्रिलोक अपनी बेटी शिवानी को भी साथ ले जा रहा था। तभी मैंने उसे यह कहते हुए रोक दिया कि चाय कौन लेकर जाएगा।

दस मिनट बीते थे कि हादसे की सूचना मिल गई। पलभर में परिवार बिखर गया। परिवार की निशानी के तौर शेष बची शिवानी। शिवानी कहती हैं कि उसे कभी चाचा ने पापा की कमी महसूस नहीं होने दी। जब भी पापा-मम्मी व भैया की तस्वीर देखती हूं तो उनकी याद आती है।

श्यामलाल की मौत ने छीन लिया कमाऊ पूत

आकोला कस्बे के श्यामलाल धोबी की गत वर्ष 24 सितंबर 2024 को राष्ट्रीय राजमार्ग अगरपुरा-कोटडी चौराहे के पास ट्रेलर की टक्कर से मौत हो गई थी। श्यामलाल बाइक पर सवार था।

हादसे ने परिवार का कमाऊ पूत छीन लिया और परिवार पर आर्थिक संकट मंडरा गया। वृद्ध मां मांगी बाई तथा बहन व भाई को आज भी उसके इंतजार में हैं। पीड़ा है कि राज्य सरकार की ओर से उनको आर्थिक सहायता आज तक नहीं मिली।