
सूर्योदय से पूर्व ही भगवान के निर्माल्य दर्शन को भक्तजन उमड़ रहे थे तो मन्दिर के पट खुलते ही आसमां की और पूरे जोश के साथ केरलीय ढंग से भगवान अयप्पा के जयकारे लगाए जा रहे थे।

भक्तजन श्रद्धापूर्वक बारी बारी से भगवान की शरण में मत्था टेककर दु:ख हरकर परिवार में सुख शान्ति की कामना कर रहे थे।

अवसर था सुभाषनगर में अयप्पा मन्दिर की मूर्ति स्थापना के आठवें वार्षिकोत्सव का। वार्षिकोत्सव के दूसरे दिन अयप्पा मन्दिर केरलीय साज-सज्जा से भव्य रूप लिए था। भीलवाड़ा में निवासरत दक्षिण भारत के परिवार परम्परागत वेशभूषा में पूरे उत्साह के साथ सभी कार्यक्रमों में हिस्सा ले रहे थे।

पूरे दिन लोग भक्ति से सरोबार रहे। सवेरे पांच बजने से पूर्व ही भक्तजन मन्दिर पहुंच गए और बेसब्री से मन्दिर के पट खुलने का इंतजार करने लगे। जैसे ही पट खुले सभी ने एक स्वर में भगवान अयप्पा का स्मरण किया और उनके दर्शन किए।

इस दौरान पराइडल अर्चना के बाद भोर की पहली किरण निकलने के साथ मन्दिर प्रांगण में केरल से आए पण्डित वेकटेशरण पोटी व सहयोगी पण्डित किरण एस भट्टरत्रि व पण्डित कृष्ण कुमार के सानिध्य में गणपति हवन प्रांरभ हुआ। हवन में अष्टद्रव्यों की आहूतियां देकर भक्तों ने भगवान अयप्पा से सुख-शान्ति व दु:ख दर्द दूर करने की प्रार्थना की।

बाद में 151 कलशों को जल से भर अभिमंत्रित किया और बह्राकलश के साथ पूजा के बाद पंचगव्यों से 'स्वामी ए शरणम अयप्पा' के जयकारों के साथ भगवान अयप्पा का अभिषेक किया गया। दोपहर में नागदेवता की सामूहिक पूजा व नागयक्षी का हल्दी और दूध से अभिषेक किया गया।