किसानों की मेहनत पर फिरा पानी
६० हैक्टेयर में खराब हुए पपीते, घाटे में किसान
मौसम की मार नहीं झेल पाए ताइवानी पौधे
नष्ट करने पड़े पौधे, टमाटर व अन्य फसल बोई

केस-१
बागौर के चेतन सोनी ने तीन बीघा ने ताइवानी पपीते लगाए। मौसम की मार नहीं झेल पाए और सभी नष्ट हो गए। इससे करीब तीन लाख का नुकसान हुआ है।
केस-२
भीलवाड़ा की मंजू पण्ड्या ने पांच बीघा में ताइवानी पपीते लगाए। पहले गर्मी, फिर सर्दी अब फिर गर्मी बढ़ी तो सभी पौधे खराब हो गए। १५०० पौधे को नष्ट कर टमाटर बोये हैं।
केस-३
सहाड़ा क्षेत्र में किसान रामचन्द्र गाडरी ने ढाई बीघा में पपीते के पौधे लगाए थे। लेकिन मौसम की चपेट में आने से खराब हो गए।
भीलवाड़ा।
यह तीनों केस जिले की एक तस्वीर बयां कर रहे हैं, जो खेती किसानी के प्रति मौसम की मार से उपजी है। जिले के ६० हैक्टेयर से अधिक क्षेत्र में पपीते के पौधे लगभग खराब हो गए। इससे किसानों को लाखों रुपए का नुकसान हुआ। जिले में दर्जनों किसान पपीते के पौधे खुद ही नष्ट करने को मजबूर हुए क्योंकि ये फल देने लायक नहीं बचे थे। लिहाजा, पपीते के पौधे हटाकर कोई टमाटर तो कोई अन्य फसल बो रहा है।
जिले में ताइवानी पपीते के पौधों की कई नर्सरी है। इसमें साल में एक फसल आती है। पौधा दो साल चलता है लेकिन इस बार पपीते पकने का समय आया तो ज्यादा सर्दी और अब अधिक गर्र्मीं से पपीते पीले पड़कर खराब हो गए। कई पौधों में बीमारी आ गई। देशी बीज के पौधे तीन से चार साल फल देते है, लेकिन वे भी इस बार नष्ट हो गए। पपीते के लिए अधिकतम तामपान 22 से 26 डिग्री के और सर्दी में 10 डिग्री से कम नहीं होना चाहिए। अधिक सर्दी तथा पाला व गर्मी इसके शत्रु हैं। इससे पौधे व फल दोनों प्रभावित हो रहा है। जिले के ६० हैक्टेयर से अधिक क्षेत्र में लगाई पपीते की फसल लगभग नष्ट हो गई है। इससे किसानों को लाखों रुपए का नुकसान हुआ है।
उद्यान विभाग से मदद नहीं
जिले में पपीते के पौधे ६० हैक्टेयर में है। उद्यान विभाग से किसी तरह की सहायता नहीं मिलती है। इसलिए फसल के खराब होने से भी किसानों की मदद नहीं कर सकते। हालांकि यह फसल अन्य जिलों में उद्यान विभाग के अधीन आती है। लेकिन भीलवाड़ा जिले में इसे नहीं जोड़ा गया है।
रामकिशोर मीणा, सहायक निदेशक उद्यान
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