
Illegal mining in Banas river in bhilwara
गेन्दलिया।
मेवाड़ की सबसे पवित्र नदी बनास का सीना छलनी हो चुका है। बनास नदी से लगातार हो रहे बजरी दोहन से भूजल स्तर भी काफी नीचे जा चुका है। पिछले कुछ सालों से नदी के पेटे में खुदे कुओं का जलस्तर भी लगातार घट रहा है। वहीं नदी के आसपास के गांवों में तो अधिकांश कुएं सुख चुके हैं। इससे किसानों की चिन्ता बढ़ रही है।
नदी का धार्मिक दृष्टि से भी काफी महत्व है। यहां बेड़च, मेनाली व बनास नदी मिलकर त्रिवेणी संगम बनाती है जहां भगवान शंकर का पवित्र तीर्थ स्थल है। बीगोद के निकट त्रिवेणी संगम पर भीलवाड़ा सहित अन्य जिलों से भी बड़ी संख्या में लोग यहां स्नान करने व पूर्वजों की अस्थियां विसर्जित करने आते हैं। यही कारण है कि बनास को मेवाड़ की गंगा कहा जाता है। बनास किनारे जित्या, आमा, रेणवास, बड़ला, बनका खेडा, कांन्दा, सर्वापुर, सोपुरा, सहित दस-दस कोस तक के गांवों में बनास नदी का सेजा है। इन गांवों का जीवन बनास नदी पर ही निर्भर है।
बजरी दोहन से नदी में गहरे गड्ढ़े हो चुके हैं। जेसीबी मशीनों द्वारा चरागाह भूमि, बिलानाम भूमि, पहाडिय़ों में अवैध खनन कर नदी के बहाव क्षेत्र में मोरम मिट्टी व मलबा डाल कर कई किलोमीटर ग्रेवल सड़कें बना दी गई है। वहीं औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले अपशिष्ट से नदी व आसपास के गांवों में भी कुओं का पानी दूषित होता जा रहा है। बजरी माफिया इतने बेखौफ हो चुके हैं कि ग्रामीणों विरोध करने पर उनके साथ मारपीट तक की जाती है। उन्हें जान से मारने तक की धमकी दी जाती है। जिससे ग्रामीण अपनी आवाज को प्रशासन तक नहीं पहुंचा पा रहे हैं।
यहां हो रहा है बजरी दोहन
बनास नदी के आसपास हमीरगढ, स्वरूपगंज, मंगरोप, पाटनिया, पीपली, हांसियास, सियार, कलुन्दिया, महेशपुरा, धांगडास, सोलंकियो का खेड़ा, पितास, रेण, अमरतिया, गेन्दलिया खरेड़ भाकलिया, अड़सीपुरा, आकोला, जीवाखेड़ा सहित दर्जन भर गांवों में प्रतिदिन बजरी का दोहन होता है।
20 से 30 फिट तक गहरी हुई नदी
प्रशासन की अनदेखी व बजरी माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई नहीं होने से बनास नदी 20 से 30 फिट तक गहरी हो चुकी है। कुछ सालों पहले तक नदी पेटे स्थित कुओं की मुंडेर तक बजरी रहती थी। लेकिन अब हालात यह है कि नदी के पेटे से कुओं की मुंडेर करीब 30 फिट तक उपर है।
Published on:
09 May 2018 04:01 pm
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