
भीलवाड़ा।
भीलवाड़ा के पारिवारिक न्यायालय के न्यायाधीश राजेन्द्र कुमार शर्मा ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए घर में शौचालय नहीं होने को क्रूरता के समान माना। इसी आधार पर उन्होंने एक महिला की पति से तलाक की याचिका मंजूर कर ली। ससुराल में शौचालय नहीं होने के चलते महिला दो साल से ससुराल से अलग अपने पीहर रह रही थी। न्यायाधीश ने घर में शौचालय नहीं होने पर महिलाओं को होने वाली मानसिक पीड़ा पर टिप्पणी करते हुए इसे समाज के लिए कलंक बताया।
भीलवाड़ा के पुर में रहने वाली एक युवती ने न्यायालय में पति के खिलाफ तलाक के लिए वर्ष 2015 में परिवाद पेश किया था। परिवाद में कहा कि उसका विवाह 2011 में हुआ था, लेकिन ससुराल में उसके लिए न तो अलग से कमरा है और न ही शौचालय। खुले में शौच जाने के कारण उसे शर्मिंदगी उठानी पड़ती है। इस प्रकरण में सुनवाई के बाद न्यायाधीश शर्मा ने घर में शौचालय नहीं होने को महिलाओं के लिए मानसिक क्रूरता और त्रासदीपूर्ण स्थिति माना।
उन्होंने अपने फैसले में कहा कि किसी भी महिला और उस पर भी नवविवाहिता महिला को खुले में शौच जाना उसे शर्मिंदगी और लज्जा का अहसास कराने के लिए पर्याप्त है। सरकार इसके लिए लगातार जागरूकता अभियान चला रही है। आमजन को प्रेरित कर रही है। जरूरतमंदों को इसके लिए आर्थिक मदद भी दे रही है।
क्या हमें कभी दर्द हुआ
न्यायाधीश शर्मा ने फैसले में कहा, 'क्या हमें कभी दर्द हुआ है कि हमारी मां और बहनों को खुले में शौच करना पड़ता है। गांव की गरीब महिलाएं रात की प्रतीक्षा करती है, जब तक अंधेरा नहीं उतरता, तब तक वह शौच के लिए बाहर नहीं जा सकती। उन्हें किस प्रकार की शारीरिक यातना होती होगी। क्या हम अपनी मां और बहिनों की गरिमा के लिए शौचालय की व्यवस्था नहीं कर सकते। परिवार की आवश्यकता और महिलाओं मान सम्मान के लिए शौचालय अपरिहार्य है। वे 21 वीं सदी के इस दौर में खुले में शौच की प्रथा समाज के लिए कलंक है। शराब, तम्बाकू और मोबाइल पर बेहिसाब खर्च करने वाले घरों में शौचालय का ना होना एक विडम्बना है।
Updated on:
19 Aug 2017 10:09 am
Published on:
19 Aug 2017 12:13 am
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