यहां तालाब पर ग्रे लेग गूज, रूडी शेल डक, बार हेडेड गूज,ग्रेट वाइट पेलिकन, मलार्ड,टफ्टेड डक, पोचार्ड, नार्दन शावलर, कॉमन टील, पेंटेड स्टोर्क आदि प्रजाति के पक्षी आते है। यहां तालाब पर इनका प्रवास जनवरी से फरवरी तक रहता है और इसके बाद लाखों मील की दूरी तय कर घर लौट जाते है।
पक्षी विहार में घने पेड़ों पर सैकड़ों घोंसले है। इनमें पेंटेट स्ट्रोक प्रजाति के पक्षियों का अभी प्रजनन काल होने से बड़ी संख्या में घोंसले है। यहां देश एवं विदेश के हिस्से से आने वाले पक्षी सुरक्षित महसूस करते है। विदेशी प्रजाति के पक्षियों का तो यहां सर्दी में जमावड़ा रहता है।
वन विभाग ने चावंडिया को वेटलैंड के रूप में विकसित करने का प्रस्ताव राज्य सरकार को भिजवाया है। वेटलैंड के प्रबंधन से पक्षियों के आवास के रूप में घोसलें के लिए पौधरोपण, आस पास के अस्थाई अतिक्रमण को हटाने पानी के आवक के चैनल को दुरस्त करने समेत आदि कार्य हो सकेंगे। चावंडिया पर्यटन के साथ ही पक्षी विहार के रूप में देश- दुनियां के रूप में उभरेगा, यहां पक्षी प्रेमी व विशेषज्ञ भी अध्ययन व शोध के लिए आ सकेंगे, लेकिन दो साल से यह योजना सरकारी कागजों में ही दबी हुई है।
यहां मंगोलिया एवं चीन को पार करते विदेशी भूमि से पक्षी आते है। तालाब के मध्य में ताजमहल की भांति चामुंडा माता मंदिर स्थित है, तालाब की पाल पर पुरातन कालीन जैन मंदिर के अवशेष है, यहां राणा सांगा के ं वीरगति को प्राप्त होने का वर्णन है । ग्रामीणों की ***** सजगता एवं जागरूकता के कारण यहां पर पक्षियों की विभिन्न प्रजातियां कलरव करती है, पक्षियों का शिकार पूर्णतया प्रतिबंधित है एवं तालाब से सिंचाई अथवा अन्य कार्य के लिए पानी को निकालना भी निषेध है।
शुभम ओझा, अध्यक्ष स्वामी विवेकानंद युवा संस्थान चावंडिया
चावंडियां को पक्षी विहार के रूप में विकसित करने के लिए जिला प्रशासन, वन विभाग व संस्थान के सहयोग से यहां वर्ष 2017 में पक्षी महोत्सव शुरू किया। इसमें राज्य भर के पक्षी विशेषज्ञ आते है। इस वर्ष भी पक्षी महोत्सव के आयोजन की तैयारी शुरू कर दी है। इसी प्रकार गुरलां व सांखड़ा में भी पक्षी संरक्षण कार्य हो रहा है। यहां पक्षी मित्र दल भी गठित है।
महेश चन्द्र नवहाल, अध्यक्ष, जलधारा विकास संस्थान
चावंडिया तालाब को जिले के वेटलैंड व पर्यटन स्थल के रूप विकसित करने की कार्ययोजना राज्य सरकार को भिजवा दी है। चावंडिया तालाब का प्रारूप सांभर झील की भांति होगा। कोरोना संकट के कारण यहां गत दो वर्ष से पक्षी महोत्सव आयोजित नहीं हो रहा है।
देवेन्द्र प्रताप सिंह जागावत, उपवन संरक्षक