
कानाराम मुण्डियार
अशोक कोठारी एक ऐसा नाम है, जिनका इस विधानसभा चुनाव से पहले राजनीति से दूर-दूर का रिश्ता नहीं था। पहले कभी राजनीति में आने का सोचा तक नहीं। 62 वर्षीय कोठारी अब तक अपने कारोबार के साथ गौ-सेवा कार्य एवं भामाशाह के रूप में पहचाने जाते रहे। मात्र 31 दिन में समय का ऐसा फेर आया कि अब उनकी पहचान विधायक के रूप में हो गई। भाजपा के गढ़ भीलवाड़ा में अशोक कोठारी निर्दलीय लड़ाके के रूप में उतरे और विधायक बनकर चमक गए।
विधानसभा चुनाव की घोषणा से पहले तक यह नाम राजनीति की दृष्टि से चुनाव लड़ने में कहीं पर भी चर्चा में नहीं था। लेकिन जब शहर के लोगों ने आनन-फानन में उन्हें मैदान में उतार दिया तो फिर पीछे मुड़ने का नहीं सोचा। भाजपा के गढ़ में न केवल किसी निर्दलीय की यह पहली रेकार्ड जीत रही, बल्कि गढ़ के घमंड में चूर भाजपा प्रत्याशी व तीन बार के विधायक विट्ठलशंकर अवस्थी को तीसरे नम्बर पर धकेल दिया। इससे पहले के चुनाव में अब तक किसी निर्दलीय के यहां पैर तक नहीं जमे थे। चुनाव परिणाम से पहले तक किसी को अंदाजा तक नहीं था कि भाजपा को उसके गढ़ में ऐसी करारी हार मिलेगी। इसमें खास बात यह रही कि न केवल खुद कोठारी बल्कि उनके समर्थन में जुटा एक-एक कार्यकर्ता खुद कोठारी बनकर चुनाव लड़ रहा था। चुनाव सिद्धांत व उसूल पर लड़ा गया। इसलिए पहली बार निर्दलीय की रेकार्ड जीत हुई।
बड़ा मंदिर से बनी रणनीति-
भाजपा प्रत्याशी की टिकट की घोषणा हुई और चौथी बार भी टिकट अवस्थी को मिला तो भाजपा में ही नाराज धड़े और शहर के प्रबुद्धजन ने 2 नवम्बर सुबह नया चेहरा उतारने की आनन-फानन में तैयारी शुरू की। शाम को बड़ी संख्या में लोग अम्बेडकर सर्किल पर एकत्र हुए और यहां से श्री चारभुजानाथजी के बड़ा मंंदिर पहुंचे। अग्रणी लोगों में कोठारी शामिल थे। मंदिर में दर्शन के साथ ही लोगों ने अशोक कोठारी को चुनाव में उतरने का पुरजोर आग्रह किया और हां करवा ली। लोगों ने कहा, भीलवाड़ा के हित में आप चुनाव लड़ो, हम आपके साथ हैं। 6 नवम्बर को नामांकन दाखिल किया और 3 दिसम्बर को विधायक निर्वाचित हो गए।
मैं वोट मांगने नहीं आया हूं-
पूरे चुनाव में खास बात यह रही कि कोठारी ने अपने पूरे जनसम्पर्क में किसी से वोट देने की अपील नहीं की। लोगों से इतना ही कहते रहे कि मैं वोट मांगने नहीं आया हूं। केवल आपसे मिलने और आपके दर्शन करने आया हूं। आप लोग वोट अपने विवेक से दें। हम सत्य व सनातन की राह पर हैं। हम भीलवाड़ा को कोटा-इन्दौर जैसा देखना चाहते हैं। हम मिलकर कार्य करेंगे। चाहे परिणाम कुछ भी रहे, लेकिन मैं अगले पांच साल और आगे भी आपकी सेवा में रहूंगा।
न माला पहनी व न साफा-
चुनाव प्रचार के दौरान एक तरफ भाजपा व कांग्रेस के प्रत्याशी साफे व मालाओं से स्वागत करवा रहे थे। दूसरी तरफ कोठारी ने कहीं पर भी माला व साफा या शॉल नहीं पहना। बहुत आग्रह पर किसी की ओर से भगवा दुपट्टा गले में डालने पर वो भी सामने वाले को ही भगवा पहना देते रहे।
भगवा दुपट्टा नहीं छोड़ा-
कोठारी के चुनाव लड़ने का आगाज नामांकन रैली में भगवान झंडे व भगवा दुपट्टों के लहराते हुए हुआ। पूरे चुनाव में भगवा ही भगवा दिखा। चुनाव प्रचार के दौरान अधिकतर समय उनके गले में भगवा दुपट्टा ही दिखाई दिया।
नए चेहरे का ट्रेंड -
विचारधारा परिवार (आरएसएस) केे प्रभाव वाले भाजपा के गढ़ भीलवाड़ा सीट पर अशोक कोठारी की तरह और भी नए चेहरे आए, जिन्होंने पहले कभी सोचा तक नहीं था कि वे विधायक बनेंगे, लेकिन आए तो ऐसे आए कि जनता ने सिर-आंखों पर बैठा लिया। शाहपुरा विधानसभा से चुनाव जीते लालाराम बैरवा भी सरकारी स्कूल में पीटीआई थे। चुनाव से पहले ही वो किसी पार्टी से नहीं जुड़े थे। चुनाव से पहले वीआरएस लिया और भाजपा का टिकट मिला तो पूर्व विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल को बड़े अंतर से चुनाव हरा दिया। बैरवा ने मेघवाल को तीसरे नम्बर पर धकेल दिया।
Published on:
07 Dec 2023 09:02 am
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