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देश में राजस्थान में सबसे महंगी औद्योगिक बिजली, सवाल- अब कैसे विकसित हो ‘म्हारो राजस्थान’

Rajasthan Electricity News : चौंक जाएंगे यह जानकार। देश में सबसे महंगी औद्योगिक बिजली राजस्थान में है। महंगी बिजली के चलते भीलवाड़ा से करीब 500 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश के नीमच में शिफ्ट हो गए। अब सरकार से यह है सवाल...।

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Rajasthan has Most Expensive Industrial Electricity in Country Question how can Mhaaro Rajasthan Develop

सुरेश जैन
Rajasthan Electricity News : देश में सबसे महंगी औद्योगिक बिजली राजस्थान में है। जबकि आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात में सस्ती बिजली मिल रही है। इन राज्यों की सरकार बिजली की दरों पर छूट व अनुदान दे रही है। जिला स्तरीय समिट में टेक्सटाइल के कई एमओयू हुए हैं, लेकिन उद्यमी बिजली की दरों को लेकर प्रोजेक्ट आगे नहीं बढ़ा पा रहे हैं। उद्योगों ने सोलर प्लांट लगाए, इनकी क्षमता 100 प्रतिशत से अधिक नहीं है। जबकि सरकार ने पिछले बजट में सौर ऊर्जा उत्पादन की सीमा 100 से बढ़ाकर 200 प्रतिशत करने घोषणा की थी। नोटिफिकेशन जारी नहीं होने से इसका लाभ उद्यमियों को नहीं मिल रहा। उद्यमी गुजरात में विस्तार करने की योजना बना रहे हैं। महंगी बिजली के चलते भीलवाड़ा से करीब 500 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश के नीमच में शिफ्ट हो गए।

राजस्थान में कोई फायदा नहीं

दूसरे राज्यों के मुकाबले राजस्थान में कोई फायदा नहीं मिल रहा। यहां सबसे महंगी बिजली मिल रही। टेक्सटाइल पॉलिसी में विद्युत दरों में किसी तरह की छूट या अनुदान नहीं है। जबकि अन्य राज्यों गुजरात, महाराष्ट्र तथा आंध्रप्रदेश में 1 से 3 रुपए प्रति यूनिट का अनुदान मिल रहा है।

गुजरात में यह फायदा

गुजरात में पावर टेरिफ में एक रुपया प्रति यूनिट से अनुदान पांच वर्ष के लिए दिया जा रहा है। ऑपन एसेस से खरीदे गए पावर पर भी यह अनुदान लागू है।

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महाराष्ट्र में यह फायदा

इलेक्ट्रिसिटी-पावरलूम, निटिंग, होजरी, गारमेंट इकाई के लिए 3.40 रुपए से 3.77 रुपए प्रति यूनिट की छूट तथा प्रोसेसिंग एवं स्पिनिंग इकाई के लिए 2 रुपए प्रति यूनिट की छूट मिल रही है।

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आंध्रप्रदेश में यह फायदा

इलेक्ट्रिसिटी सब्सिडी-एमएसएमई इकाई के लिए 2 रुपए प्रति यूनिट की छूट दी जा रही है।

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20 प्रतिशत ही सौर ऊर्जा का उपयोग

उद्योगों में 100 प्रतिशत क्षमता के सोलर प्लांट लगे हैं। इससे आवश्यकता का 20 प्रतिशत ही सौर ऊर्जा का उपयोग होता है। 80 प्रतिशत बिजली डिस्कॉम से लेनी पड़ती है। सोलर केवल 8 घंटे यानि 9 से 5 बजे तक ही ऊर्जा उत्पादन करता है। इसके बाद डिस्कॉम की बिजली पर निर्भर रहना पड़ता है। जबकि औद्योगिक इकाइयां 24 घंटे चलती है। इसके कारण उद्योगों को 7.50 से 8 रुपए प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीदनी पड़ती है। इस आर्थिक मंदी में यदि कांट्रेक्ट डिमांड का 300 से 400 प्रतिशत सोलर एनर्जी इस्टॉलेशन का प्रावधान हो तो उद्योगों को भी संबल मिल सकता है। महंगी बिजली की वजह से भीलवाड़ा के उद्यमी दूसरे राज्यों से प्रतिस्पर्धा में पिछड़ रहे हैं। उद्योग नीमच, मंदसौर तथा गुजरात में पलायन कर रहे हैं।

उद्योगों को नहीं मिल रहा सेट ऑफ

टेक्सटाइल उद्यमी सोलर के बड़े प्लांट लगा रहे हैं। अतिरिक्त बिजली उत्पादन होने से सरकार 3 रुपए प्रति यूनिट की दर से खरीदती है। उद्योग को यही बिजली आठ रुपए प्रति यूनिट की दर से खरीदनी पड़ती है। उद्योगों को सेट ऑफ मिलना चाहिए। औद्योगिक संगठनों की मांग है कि सरकार प्लांट लगाने की क्षमता 300 से 400 प्रतिशत करें ताकि उद्योगों को सस्ती बिजली मिल सके।
पीएम बेसवाल, उद्यमी भीलवाड़ा

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