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सेशनल अंकों में जमकर लुटाए नंबर, स्कूलों ने दिए 20  में से 20 , उसी विषय में परीक्षा में आए 80 में से 0

सरकारी स्कूलों ने अपना परिणाम सुधारने के लिए बच्चों को सेशनल(सत्रांक) में जमकर नम्बर लुटाए गए

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rbse 10th result 2018 in bhilwara

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भीलवाड़ा।

सरकारी स्कूलों ने अपना परिणाम सुधारने के लिए बच्चों को सेशनल(सत्रांक) में जमकर नम्बर लुटाए गए। लेकिन उसी विषय की सैद्धांतिक परीक्षा में बच्चों के जीरो नम्बर आए। राजस्थान बोर्ड की ओर से सोमवार को घोषित दसवीं के परिणाम में कई केस सामने आए हैं।

राजस्थान पत्रिका ने दसवीं कक्षा में 4695 बच्चे फेल होने पर कमजोर परिणाम रहे स्कूलों का रिपोर्ट कार्ड देखा। इसमें चौंकाने वाली हकीकत सामने आई है। जिन बच्चों को स्कूलों ने टॉपर माना और सेशनल में 20 में से 20 अंक दिए। इन विषयों में 20 में से 20 अंक बच्चे को पढ़ाई में होशियार मानकर दिए गए। लेकिन बच्चे ने जब बोर्ड की परीक्षा दी और थ्योरी का परिणाम आया तो पोल खुल गई। अधिकांश बच्चों को 80 में से एक, दो या 0 अंक मिले हैं। इससे पता चलता है कि स्कूलों में केवल दरियादिली दिखाकर नंबर लुटाने का खेल हुआ है। इस बार जिले में कुल 24 हजार 581 परीक्षार्थियों ने परीक्षा दी है इसमें से 19886 परीक्षार्थी पास हुए। मतलब 4695 बच्चे दसवीं कक्षा में फेल हुए हैंं।

राउमावि लड़की में एक विद्यार्थी ने गणित विषय में सेशनल में 20 में से 19 अंक हासिल किए। बोर्ड परीक्षा में थ्योरी में 80 में से मात्र 3 अंक मिले हैं। सेशनल में बाकी विषय में 19 अंक दिए है जबकि थ्योरी में भी इतने ही नंबर आए है। मतलब खूब नंबर दिए लेकिन पास नहीं हो पाया।


राउमावि कंवलियास में एक परीक्षार्थी को गणित विषय में स्कूल से 20 में से 18 अंक भेजे गए। बोर्ड परीक्षा में थ्योरी में 80 में से शून्य अंक मिला है। मतलब थ्योरी में एक भी अंक नहीं ला सकने वाले विद्यार्थी को स्कूल ने 20 में से 18 अंक दिए है। इसके बावजूद यह पूरक आया है।

पत्रिका व्यू: स्कूल क्यों छिपाते हैं सच
सरकारी स्कूलों के संस्था प्रधान सच दिखाने में हिचक रहे हैं। बच्चे की कमजोरी छिपाते हुए स्कूल की अद्र्धवार्षिक परीक्षा में उसे अच्छे नम्बर दे दिए जाते हैं, जिससे बच्चा अपनी तैयारी को लेकर भ्रमित हो जाता है। वह आगे की पढ़ाई में सुस्त हो जाता है। यदि उन्हें अद्र्धवार्षिक परीक्षा में ही उनकी तैयारी का सच दिखा दें तो वार्षिक परीक्षा में अच्छी तैयारी करेंगे। लेकिन हो यह रहा है कि वे अपना परिणाम सुधारने के चक्कर में अद्र्धवार्षिक परीक्षाओं में जमकर नंबर दे रहे हैं। जब बोर्ड से कॉपी जांचने के बाद जो नंबर आ रहे हैं, इससे परीक्षार्थी भी तनाव में आ रहे हैं। इसकी वजह है कि वे सोच रहे हैं कि जब स्कूल से इतने अच्छे अंक मिले हैं तो बोर्ड से परिणाम में एेसा क्या हो गया। मतलब अपनी साख के चक्कर में परिणाम में भी खेल हो रहा है।