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बिजौलिया में है भगवान पार्श्वनाथ की तपस्थली

- 3035 साल पहले की तपस्थली पर आज भी आस्था का संगम - देश की अद्वितीय गगनविहारी प्रतिमा बनी श्रद्धा का केंद्र

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The place of penance of Lord Parshvanath is in Bijolia

The place of penance of Lord Parshvanath is in Bijolia

राजस्थान में बिजौलिया ही एकमात्र वह स्थान है जहां पार्श्वनाथ तपस्या कर करीब 3035 साल पहले भगवान हुए और 23वां तीर्थंकर बने। उनके तपस्या स्थल पर भव्य तपाेदय तीर्थ बना है। यह पार्श्वनाथ भगवान के केवल ज्ञान कल्याण का स्थान है। भीलवाड़ा-कोटा राष्ट्रीय राजमार्ग पर बने तपोदय तीर्थ की शान है। यहां विराजमान 12 फीट ऊँची गगन विहारी प्रतिमा। इसमें 226 कमल पुष्प अंकित हैं। इंद्र-इंद्राणी भगवान को पुष्प अर्पित करते दिखाए गए हैं। ऐसा स्वरूप भारत में कहीं ओर नहीं है। यहां विश्व की सबसे बड़ी शैलचित्रों में से एक स्थित है। बिजौलिया को पहले विंध्यावली भी कहा जाता था। क्षेत्र पर 27 फीट सेंड स्टोन से निर्मित प्रतिमा पद्मासन है जो भारत में कहीं भी नहीं है। यहां पर 900 वर्ष पुराने प्राचीन शिखर में विराजमान भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा स्थापित है।

असुर भी न डिगा सके तपस्या

सुधासागर महाराज ने बताते है कि यह स्थान प्राचीनकाल में भीमवन कहलाता था। पार्श्वनाथ स्वामी ने यहां वर्षों तक कठोर तप किया। असुर कामठ ने चट्टानों और तूफानों से तपस्या भंग करने की कोशिश की, पर वे अडिग रहे। इसी तप से उन्हें देवत्व प्राप्त हुआ। गगनविहारी प्रतिमा के समीप 23 फीट ऊँचा कल्पवृक्ष है। इसके नीचे चारों दिशाओं में तीर्थंकर पार्श्वनाथ की प्रतिमाएं स्थापित हैं।

बिजौलिया के अद्वितीय शिलालेख

यहां दो महत्वपूर्ण शिलालेख इतिहास को प्रमाणित करते हैं। पहला, वीरनिर्वाण संवत 1226 का शिलालेख, जिसमें चौहान वंशावली व मंदिरों का विवरण है। दूसरा, उत्तम शिखर पुराण से जुड़ा शिलालेख, जो भगवान पार्श्वनाथ की तपस्थली पर आधारित है। अभिलेख बताते हैं कि सबसे पहले मंदिर निर्माण श्रेष्ठी लोकार्क ने करवाया था। बिजौलिया का प्राचीन मंदिर अतिशयकारी माना जाता है। यहां बने भव्य समवशरण मंदिर। चौबीसी मंदिर 24 तीर्थंकरों की मूर्तियों सहित। गणधर परमेष्ठी मंदिर, साथ ही, चट्टान पर मानस्तंभ और चरण प्रतिमाएँ भी उत्कीर्ण हैं।

बिजौलिया तीर्थ की खासियतें

  • 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की तपस्थली
  • 12 फीट ऊँची गगनविहारी प्रतिमा (देश में अद्वितीय)
  • 23 फीट ऊँचा कल्पवृक्ष व चतुर्मुखी प्रतिमा
  • 12वीं सदी के शिलालेख
  • भव्य समवशरण और चौबीसी मंदिर

कैसे पहुंचे तीर्थ पर

यह स्थल नेशनल हाईवे 27 पर स्थित है। भीलवाड़ा से 90 किमी, कोटा से 70 किमी, चित्तौड़गढ़ से 105 किमी, उदयपुर से 224 किमी दूरी। यहां ठहरने और भोजन की सुविधाएं उपलब्ध हैं।