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स्कोरर बनने से मना किया तो छात्रा ने एससी-एसटी एक्ट के तहत झूठे केस में फंसाया…

50 दिन जेल में रहा, हथकड़ी में परीक्षा दी, आखिर 6 साल बाद मिला न्याय...

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स्कोरर बनने से मना किया तो छात्रा ने एससी-एसटी एक्ट के तहत झूठे केस में फंसाया...

विकास मिश्रा@भोपाल/ इंदौर
एससी-एसटी एक्ट को लेकर देशभर में चल रही बहस के बीच एक्ट के दुरुपयोग का एक बड़ा मामला सामने आया है। व्यापमं घोटाले में गलत तरीके से एडमिशन लेने वाली एक छात्रा ने सहपाठी छात्र को अपनी बहन का स्कोरर बनने का प्रस्ताव दिया। उसने इनकार किया तो छात्रा ने पहले उस पर फर्जी फेसबुक प्रोफाइल बनाकर अभद्र फोटो अपलोड करने का आरोप लगाया।

इसके बाद में उसे एससी-एसटी एक्ट में फंसा दिया। छात्र को 50 दिन जेल में गुजराने पड़े। यहां तक कि सेकंड इयर का एग्जाम हथकड़ी में देना पड़ा। सदमे के कारण पिता को पैरेलेसिस हो गया। छह साल बाद कोर्ट से छात्र को अब न्याय मिला है, जबकि छात्रा को पहले ही कॉलेज से निकाला जा चुका है।

मूल रूप से भोपाल निवासी डॉ. वैभव जैन एमजीएम मेडिकल कॉलेज इंदौर के छात्र थे। वैभव के वकील अजय मिश्रा के अनुसार उनकी सहपाठी नेहा वर्मा ने 2011 में वैभव को छोटी बहन पूजा का स्कोरर बनने का प्रस्ताव दिया।

PMT में मदद करे...

वह चाहती थी कि वैभव पूजा की पिछली सीट पर बैठ जाए और उसे पीएमटी पास करने में मदद करे। इससे नाराज नेहा ने उसकी फर्जी फेसबुक आईडी बनाकर 27 अक्टूबर 2012 को वी केयर फॉर यू में अभद्र फोटो डालने की शिकायत दर्ज करा दी।

ये लगाए आरोप...

इंदौर के पलसिया थाना पुलिस ने जांच के बाद 5 फरवरी 2013 को वैभव के खिलाफ आइटी एक्ट के तहत प्रकरण कर दर्ज कर लिया। इसके बाद जब वैभव को अग्रिम जमानत मिल गई तो नेहा ने 18 फरवरी 2013 को पलासिया थाने पर वैभव के खिलाफ अभद्रता करने व जातिसूचक शब्द कहने का आरोप लगा दिया।

पुलिस ने वैभव के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट में केस दर्ज कर लिया। पांच साल बाद 1 अगस्त 2018 को अपर सत्र न्यायाधीश बीके द्विवेदी ने सारे आरोप झूठे पाते हुए वैभव को बाइज्जत बरी कर दिया।

कोर्ट में यूं हटा झूठ से पर्दा
गवाहों के बयान में यह बात सामने आई कि नेहा ने छोटी बहन पूजा को पीएमटी पास कराने के लिए वैभव को स्कोरर बनने को कहा था। वैभव ने इससे मना कर दिया था।
एससी-एसटी एक्ट में केस दर्ज कराने से पहले नेहा के मित्र जितेंद्र मालवीय ने 11 फरवरी 2013 वैभव को फोन किया था और नेहा की तरफ से पैसों की मांग की थी। नहीं देने पर केस दर्ज कराने की धमकी दी थी। फोन की रिकॉर्डिंग कोर्ट में पेश की गई थी।

नेहा कोर्ट में यह तक साबित नहीं कर सकी कि वह अनुसूचित जनजाति से है। इससे जुड़े कोई सबूत पेश नहीं हुए। जाति प्रमाण पत्र की फोटो कॉपी पेश की गई जो कोर्ट ने वैध नहीं मानी।
फर्जी फेसबुक आईडी बनाने और उस पर अश्लील फोटो और कमेंट करने से जुड़े आरोप भी कोर्ट में साबित नहीं हुए। कॉलेज प्रांगण के जिस स्थान पर वैभव द्वारा जातिसूचक शब्द कहने और हाथ पकडऩे की घटना बताई गई वह कोर्ट में साबित नहीं हुई।

दोस्तों के सामने नजरें नहीं उठा पा रहा था...
6 साल मेरे जीवन के सबसे बुरे वर्ष थे। इस झूठे केस ने मेरा कॅरियर बिगाड़ दिया। 50 दिन तक जेल में बिताना पड़ा। सेकंड इयर की परीक्षा देने जेल से हथकडिय़ों में लाया जाता था। दोस्तों के सामने आंखें नहीं उठा पा रहा था। सदमे से पिता को पैरेलिसिस हो गया। विपरीत परिस्थितियों में 2016 में एमबीबीएस 62 फीसदी से पास किया, लेकिन केस के कारण सरकारी नौकरी नहीं लग सकी। अब कलंक धुल गया है, पीजी कर वापसी करूंगा। मेरा एक भाई और बहन भी भोपाल में एमबीबीएस कर रहे हैं।
(जैसा वैभव ने पत्रिका से चर्चा में बताया)