स्वच्छता को लेकर लोगों में अवेयरनेस आई है, अब उतने घोटाले नहीं होते, पहले तो हर महीने एक ना एक घोटाले आते है। कुछ अच्छा भी हुआ है कुछ बुरा भी लेकिन ये जो लेफ्ट है वाले कहते हैं कि बुरा ही बुरा हुआ है तो लगता है कि जेएनयू तो अजीब सा संस्थान हो गया है। हम कब से वहां जा रहे हैं पता नहीं अब वहां के लोग कौन सा इंकलाब करने की कोशिश कर रहे हैं? यह कहना है राइटर, म्यूजिक कंपोजर, पोएट, एक्टर पीयूष मिश्रा का। अपनी गायिकी और कविताओं के जरिए देश-समाज की कड़वी सच्चाई बताने वाले पीयूष टीकमगढ़ से वाया भोपाल वापस मुम्बई लौट रहे थे, इस दौरान इन्होंने पत्रिका प्लस से विशेष बातचीत की।
1984 में हुई थी सबसे बड़ी मॉब लिंचिंग
पीयूष ने कहा कि मॉब लिंचिंग की बात करना कांग्रेस को शोभा नहीं देता है। 1984 के दंगे से बड़ी देश में कोई भी मॉब लिंचिंग नहीं हुई है। उस वक्त मैं एनएसडी फस्र्ट ईयर में था और मैंने यह सब अपनी आंखों से देखा है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मैं मॉब लिंचिंग के पक्ष में हूं। इस दौरान पीयूष ने भोपाल की खूबसूरती के बारे में कहा कि हमारे यहां रिटायरमेंट नहीं होता है नहीं तो बसने के लिए हिंदुस्तान में भोपाल से अच्छा दूसरा कोई शहर नहीं है।
अनुराग जैसे लोगों पर भी रोक लगनी चाहिए
पीयूष बोले कि मैं खुद अनुराग का सबसे बड़ा क्रिटिक हूं, उसने बॉम्बे वेलवेट, रमन राघव 2.0 और अगली जैसी फिल्में बहुत खराब बनाईं। गैंग्स ऑफ वासेपुर के बाद उसका दिमाग भ्रष्ट हो गया था लेकिन सेक्रेड गेम्स मुझे बहुत पसंद आई। अनुराग ने जिस तरह से फिल्म में क्राइम और सेक्स सींस दिखाए हैं वो हमारे समाज की हकीकत है। लेकिन मेरा मानना है कि अनुराग जैसे लोगों पर भी रोक लगनी चाहिए क्योंकि उसका बस चले तो पता नहीं क्या बना दे।