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पुर्वोत्तर में हर दस किलोमीटर पर बदल जाती है भाषा

केंद्रीय साहित्य अकादमी और भारत भवन के इस आयोजन में पुस्तक प्रदर्शनी भी आयोजित की गई।

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देखें तस्वीरों में शिक्षा के सौदागरों पर कटाक्ष नाटक एक और द्रोणाचार्य

भोपाल। उत्तर-पूर्वी लेखक और साहित्यिक समागम पूर्वोत्तरीय समारोह शनिवार से भारत भवन में शुरू हुआ। दो दिवसीय समारोह में पूर्वोत्तर की लेखनी और रचनाशीलता पर चर्चा के साथ नौटंकी की प्रस्तुति भी हुई। केंद्रीय साहित्य अकादमी और भारत भवन के इस आयोजन में पुस्तक प्रदर्शनी भी आयोजित की गई। इसमें पूर्वोत्तर राज्यों पर केंद्रित किताब सहित साहित्य और कला क्षेत्र की विशिष्ट पुस्तकों को प्रदर्शित किया गया।

इस मौके पर विशिष्ठ अतिथि के रूप में मौजूद असमिया लेखक येसे दरजे थांगछे ने कहा कि पूर्वोत्तर में एक-एक कबीले में 30-30 बोलियां बोली जाती हैं। वहां हर 10 किमी पर भाषा बदल जाती है। भाषाओं के मामले में पूर्वोत्तर बहुत समृद्ध है। देश में भाषाओं के क्षेत्र में सबसे समृद्ध पूर्वोत्तर है। यहां की भाषाओं का साहित्य भी संबंधित क्षेत्र में मिल जाएगा।

कार्यक्रम के दौरान साहित्य अकादमी के सचिव के श्रीनिवासराव, हिंदी विद्वान गोविंद मिश्र, असमिया लेखक येसे दरजे थोंगछे, संस्कृति विभाग के अपर मुख्य सचिव मनोज श्रीवास्तव, साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष माधव कौशिक और भारत भवन के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी प्रेमशंकर शुक्ल मौजूद रहे। कार्यक्रम में कविता पाठ की अध्यक्षता मदन मोहन दानिश ने की। इस कविता पाठ में विभिन्न भाषाओं में कविता पाठ हुआ।

कवियों ने पढ़ीं ये रचनाएं

मदन मोहन दानिश (उर्दू)
- हमीं ने लम्हों को यमजा किया तो रात हुई, हमीं बिखेर के लम्हों को दिन बनाते रहे...

- फरिश्तों जैसे ही होते हैं तजुर्बे दानिश, तमाम उम्र हमें रास्ता बताते रहे...

शिव शंकर मिश्र 'सरसÓ (बघेली)
- पोबा चाहय, पीसा चाहय, तात भात में ढींसा चाहय, आन के माथे फूलय पंचकय, लुमा रहय अऊ हींसा चाहय...

भीम थापा (नेपाली)

शीर्षक - बुकीफूल
- मां, मैं तुम्हारा एक गरीब बेटा, अल्प शिक्षित, अल्पज्ञ न तो मेरे पास विचारों की खान है...

शीर्षक - एकलव्य
- स्वतंत्र देश में, परतंत्र नागरिक ढूढ़ता हो तो संसार में अन्य जगह, कहीं न जाना, हो सके तो इधर मेरे यहां चले आना...

उत्तरा चकमा (चकमा)
शीर्षक- विच

- वंडरिंग अलोन इन अ हंटिंग ग्राउंड, डिड योर बैक स्टिल नॉट टच अगेंस्ट द वॉल?
शीर्षक - द पिनेन- हादी

- अ रेक्टेंगुलर शेप्ड पीस ऑफ यूनिक क्लॉथिंग...
शीर्षक: द मदर टांग

- साइलेंस कांट बी द लांग ऑफ माय मॉम...
अजीता त्रिपुरा (कोकबॅराक)

- द स्टैंथ आफ अ वूमन
शीर्षक - विडो

- चेंज द मीनिंग ऑफ द वर्ड विडो
तुलसीदास परौहा (संस्कृत)

शीर्षक - हे हरे! मादृशै: किं विधेयं तदा
- यर्हि देशस्य नेता भवेद् वच्चको, राजनीतिश्च स्वार्थान्धकारावृता...

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गणेश ठाकुर (संताली)

शीर्षक - अखाड़े में नगाड़े की आवाज
- मैं न भूलूंगा बजाना नगाड़ा, मैं न उतारूंगा कांधे से मांदर...

शीर्षक: बजाना होगा नगाड़ा
- अब भी सुनाई देता है...

साहित्य यात्रा पर आलेख पाठ

कविता पाठ के बाद मेरी रचना मेरा संसार नाम से साहित्यकारों का आलेख पाठ हुआ। इसकी अध्यक्षता रमेश चंद्र शाह ने की। इसमें अंजना बसु (अंग्रेजी), फेमलिन के मरक (गारो), मजीद मजाजी (कश्मीरी), दिलीप मायेडबम (मणिपुरी), श्रीराम परिहार (हिंदी) और बुलाकी शर्मा (राजस्थानी) ने आलेख पढ़े। आलेख में सभी साहित्यकारों ने अपनी-अपनी साहित्य यात्रा पर बात की।

तीन प्रसंगों में दिखाई हाथरस की नौटंकी

शाम के सत्र में कृष्णा कला केंद्र द्वारा हाथरस शैली नौटंकी की प्रस्तुति की गई। जिसका निर्देशन प्रसिद्ध नौटंकी कलाकार कृष्णा कुमारी माथुर ने किया। नौटंकी का शोध आलेख भगवानदास मोरवाल ने लिखा है। इस नौटंकी में अमरसिंह राठौर, भक्त पूरनमल और हरीशचंद्र तारामती प्रसंग प्रस्तुत किए गए। लगभग डेढ़ घंटे की इस नौटंकी में हारमोनियम पर देवी सिंह, नगाड़ा पर छिद्दालाल कटारिया, ढोलक पर रविशंकर नागर और गायन में प्रकाश सिंह सिसोदिया ने साथ दिया।

70 वर्षीय कृष्णा ने बताया कि उन्हें 2014 में मप्र सरकार ने अहिल्या बाई पुरस्कार मिल चुका है। उन्होंने बताया कि बचपन में नौटंकी शैली के उन्हें बचपन में परिवार का विरोध भी सहन करना पड़ा था। आज कहीं न कहीं ये कला विलुप्त होने की कगार पर है। कृष्णा कुमारी उन कलाकारों में से एक हैं, जो आज भी इस शैली को देशभर में प्रसिद्धी दिलाए हुए है।