
BJP organization election
मध्यप्रदेश में संगठन चुनावों में बीजेपी में खूब उथल पुथल हुई। पार्टी संगठन में वर्चस्व स्थापित करने के लिए केंद्रीय मंत्रियों से लेकर प्रदेश के मंत्री और सांसद, विधायकों में खासी खींचातानी मची। बीजेपी संगठन ने चुनाव के पूर्व साफ कहा था कि मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति में पूरी पारदर्शिता रखी जाएगी, मंत्री, विधायक, सांसद या जिलाध्यक्ष की पसंदगी के आधार पर पद नहीं दिया जाएगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं। पार्टी की नीति के उलट ज्यादातर मंडल अध्यक्ष विधायकों, सांसदों के चहेते ही हैं। ऐसे में हाईकमान ने बड़ा फैसला लिया है। बीजेपी में अब जिलाध्यक्षों के चयन में प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा से लेकर केंद्रीय मंत्रियों शिवराजसिंह चौहान, ज्योतिरादित्य सिंधिया आदि का सीधा दखल समाप्त कर दिया गया है। सांसद, विधायक की टिकट के जैसे ही अब जिलाध्यक्ष का नाम भी हाईकमान ही तय करेगा।
मध्यप्रदेश में बीजेपी में जिला अध्यक्षों की चयन प्रक्रिया अंतिम चरण में है। जिला अध्यक्षों के चयन के लिए नामों का पैनल तैयार हो चुका है। तीन नामों का पैनल तैयार कर चुनाव अधिकारियों ने प्रदेश संगठन को सौंप दिया है। इस प्रकार
प्रदेशस्तर पर जिला अध्यक्षों की चुनाव की कवायद पूरी हो चुकी है।
इस बीच बीजेपी हाईकमान ने बड़ा फैसला लेते हुए जिला अध्यक्षों के चयन में प्रादेशिक नेताओं का हस्तक्षेप पूरी तरह समाप्त कर दिया है। हाईकमान ने जिलाध्यक्षों का चयन खुद करने का निर्णय लिया है। ऐसा पहली बार होगा जब मध्यप्रदेश के बीजेपी जिलाध्यक्षों के नामों का निर्धारण दिल्ली से किया जाएगा। बताया जा रहा है कि हाईकमान ने प्रदेश संगठन को पहले ही इस संबंध में सूचित कर दिया था।
एमपी में अब तक जिलाध्यक्षों का चयन स्थानीय पार्टी नेता करते रहे हैं। सांसद विधायक, योग्यता को ताक पर रखकर अपने चहेतों को पद देते रहे लेकिन अब पार्टी काबिल कार्यकर्ता को ही यह अहम जिम्मेदारी देगी। यही कारण है कि केंद्रीय नेतृत्व ने जिलाध्यक्षों के चुनाव में प्रदेश नेताओं को परे करते हुए योग्यता को तरजीह देने का फैसला लिया है।
मध्यप्रदेश में मंडल अध्यक्षों के चुनाव में ऐसा हुआ भी है जिसमें अपनों को रेवड़ी बांटी गई। बीजेपी संगठन के लिहाज से प्रदेश में 60 जिले हैं। इनमें कुल 1300 मंडल अध्यक्ष और जिला प्रतिनिधियों का चयन किया जाना था। अधिकांश जगहों पर मंडल अध्यक्षों के चुनाव में खूब विवाद हुए।
बीजेपी संगठन ने मंडल अध्यक्षों के लिए उम्र सहित कई क्राइटेरिया तय किए थे। इसके अनुसार 45 साल की आयु तक के कार्यकर्ता को ही मंडल अध्यक्ष बनाना तय किया गया था। आपराधिक रिकाॅर्ड वाले, पार्टी के खिलाफ काम करनेवाले या पार्टी नेतृत्व के खिलाफ बयानबाजी करनेवाले कार्यकर्ता को पद नहीं देने का भी निर्णय लिया गया था।
हालांकि चुनाव के समय सभी गाइडलाइनें ताक पर रख दी गईं। प्रदेशभर में सांसद, विधायकों ने अपने चहेतों को ही चुना जिसका जबर्दस्त विरोध भी हुआ। मंडल अध्यक्ष बनने के लिए उम्र कम बताने की 100 से ज्यादा शिकायतें तो चुनाव समिति के पास तक पहुंची। यहां तक कि मंडल अध्यक्ष बनने के लिए लाखों रुपए लेने या मांगने तक की प्रदेश नेतृत्व को शिकायत की गई। ज्यादातर जिलों में कई मंडल अध्यक्षों को चयन के कुछ ही घंटों बाद हटा भी दिया गया। दिल्ली में चयन होने से जिलाध्यक्षों का चुनाव ज्यादा पारदर्शी होने की उम्मीद जताई जा रही है।
Updated on:
28 Dec 2024 07:20 pm
Published on:
28 Dec 2024 05:41 pm
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