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चंबल के बीहड़ों से संसद पर हमले तक, विजय रमन की अदम्य वीरता के किस्से

राष्ट्रीय स्तर का एथलीट पान सिंह तोमर, अत्याचार और अन्याय के कारण डकैत बन गया। बीहड़ों में उसकी दहशत कायम थी, लेकिन विजय रमन की अगुवाई में 14 घंटे तक चले ऑपरेशन में उसे मार गिराया गया। इस साहसिक एनकाउंटर की कहानी पुलिस की बहादुरी और रणनीतिक सोच को उजागर करती है।

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bravery stories of Vijay Raman

Bravery stories of Vijay Raman

Vijay Raman : अस्‍सी के दशक में चंबल का इलाका डकैतों के आतंक से थर्राता रहा था। पुलिस की नाकामी और प्रशासन की लाचारी के कारण इलाके में भय व्याप्त था। जब विजय रमन की पोस्टिंग वहां हुई, तो उन्होंने ठान लिया कि इस भूमि को डकैतों से मुक्त कराना ही उनका मिशन होगा। उन्होंने न केवल कई खूंखार डकैतों को खत्म किया, बल्कि बड़े गिरोहों को स मर्पण करने पर मजबूर किया।

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राष्ट्रीय स्तर का एथलीट पान सिंह तोमर(Paan Singh Tomar), अत्याचार और अन्याय के कारण डकैत बन गया। बीहड़ों में उसकी दहशत कायम थी, लेकिन विजय रमन की अगुवाई में 14 घंटे तक चले ऑपरेशन में उसे मार गिराया गया। इस साहसिक एनकाउंटर की कहानी पुलिस की बहादुरी और रणनीतिक सोच को उजागर करती है। दरअसल, इस एनकाउंटर की शुरुआत मुखबिर की एक सूचना से हुई। रमन को उसके ठिकाने के बारे में एक ऐसे व्यक्ति ने जानकारी दी, जो कि भरोसेमंद नहीं था। रमन को पहले तो इस पर संशय था, लेकिन वे पान सिंह को पकड़ने का मौका खोना नहीं चाहते थे। संसाधनों की कमी के चलते पुलिस ने रात में हमला करने की बजाय गांव को घेरने की रणनीति अपनाई, जो अंततः महत्वपूर्ण साबित हुई।

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मुठभेड़ की रोमांचक घड़ी

जैसे ही पुलिस गांव में घुसी, गोलीबारी शुरू हो गई। एसपी और उनकी टीम ने नियंत्रित फायरिंग और बेहतर रणनीति के बल पर डकैतों को घेर लिया। छत पर तैनात दो कांस्टेबलों ने कवर फायर देकर पुलिस की मदद की, जिससे यह ऑपरेशन सफल हो सका। करीब 14 घंटे तक चली इस मुठभेड़ में पुलिस ने पान सिंह तोमर और उसके कई साथियों को मार गिराया गया।

बैंडिट क्वीन फूलन देवी का आत्मसमर्पण

पान सिंह(Paan Singh Tomar) के खात्मे के बाद, कई डकैतों ने आत्मसमर्पण करना शुरू कर दिया, जिसमें कुख्यात फूलन देवी भी शामिल थी। फूलन देवी, जिसने समाज के अत्याचारों के खिलाफ हथियार उठाए, उसकी भी दहशत कायम थी। बढ़ते पुलिस दबाव के कारण उसने आत्मसमर्पण का फैसला किया। 1983 में, प्रदेश पुलिस और तत्कालीन सरकार की पहल पर, उसने हजारों दर्शकों और अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण किया। इसके अगुवा भी विजय रमन ही थे।

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राजीव गांधी की शॉल कार की फाटक से बाहर थी…

विजय रमन के प्रधानमंत्री सुरक्षा दल (एसपीजी) में शामिल होने की दास्तां भी उनकी निडरता को दर्शाती है। तत्कालीन पीएम राजीव गांधी मध्यप्रदेश आए और जब उनका काफिला रवाना हुआ तो पीएम की कार की फाटक के बाहर उनकी शॉल लटक रही थी। यह देख विजय रमन से रहा नहीं गया। उन्होंने कार रूकवाकर पीएम के सामने ही एसपीजी की इस खामी को उजागर किया।

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जब राजीव गांधी(Rajeev Gandhi) दौरा समाप्त करे लौटने लगे तो उन्होंने निर्देश दिए कि विजय रमन को एसपीजी में भेज दें। इसके बाद प्रदेश सरकार ने उन्हें नहीं भेजा तो फिर से दिल्ली से उनके नाम का बुलावा आया और विजय रमन बगैर किसी औपचारिकता के एसपीजी का हिस्सा हो गए। वे अपनी काबिलियत के दम पर लंबे समय तक एसपीजी में रहे। उन्होंने चार प्रधानमंत्रियों – राजीव गांधी, वीपी सिंह, चंद्रशेखर और पीवी नरसिम्हा राव की सुरक्षा संभाली।

गाजी बाबा का खात्मा

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उनकी वीरता यहीं खत्म नहीं हुई। जब पाकिस्तान सीमा पर आतंकवादियों की घुसपैठ रोकने के लिए ऑपरेशन चलाया गया, तो उन्हें इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई। उन्होंने संसद हमले के मास्टरमाइंड गाजी बाबा को 10 घंटे तक चले ऑपरेशन में मार गिराया।