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उपचुनाव नतीजेः भाजपा की बढ़ेंगी चुनौतियां, कांग्रेस को उम्मीदों का डोज

पश्चिम बंगाल और दमोह विधानसभा उपचुनाव के नतीजों का प्रदेश की सियासत पर असर

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भोपाल.पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजों से मध्य प्रदेश भाजपा की चुनौतियां बढ़ने वाली हैं। भाजपा ने पश्चिम बंगाल में पूरी ताकत और नेताओं की फौज झोंक दी थी, लेकिन इन सब पर ममता बनर्जी भारी पड़ीं। इसी तरह प्रदेश में दमोह विधानसभा सीट पर भी तमाम दिग्गजों के उतरने के बावजूद भाजपा पिछड़ गई। इससे आगामी नगरीय निकाय चुनाव, पंचायत चुनाव और विधानसभा सीटों के उपचुनाव में भाजपा की मुश्किलें बढऩा तय माना जा रहा है। पश्चिम बंगाल और दमोह के रिजल्ट से कांग्रेस को उम्मीदों का डोज मिला है। नतीजे साबित करते हैं कि हिंदूवादी एजेंडे के बावजूद भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। इसलिए कांग्रेस के लिए नतीजे उम्मीदों की सौगात हैं।

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इन नेताओं के कद पर लगाम
पश्चिम बंगाल के चुनावी नतीजों ने मध्य प्रदेश के कई नेताओं के सियासी कद पर भी लगाम लगा दी है। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का कद सीमित हो गया है। मंत्री नरोत्तम मिश्रा, अरविंद भदौरिया और विश्वास सारंग भी इस दायरे में आते हैं। केंद्रीय राज्य मंत्री प्रहलाद पटेल और थावरचंद गहलोत भी इन चुनावों में असर नहीं दिखा सके। इन नेताओं को प्रदेश के बाहर चेहरे के रूप में प्रोजेक्ट करने पर भी पार्टी लगाम लगा सकती है।

कांग्रेस बोली- दो नेताओं का घमंड चूर
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के मीडिया समन्वयक नरेंद्र सलूजा ने कहा है कि विधानसभा चुनाव के नतीजों से भाजपा के दो नेताओं का घमंड चूर-चूर हो गया है। सीएम इन वेटिंग कैलाश विजयवर्गीय और नरोत्तम मिश्रा प. बंगाल को लेकर बड़े दावे करते थे। इस कोरोना में प्रदेश वासियों को भगवान भरोसे छोड़ चुनाव प्रचार में लगे थे। दोनों ख़ुद को बड़ा मैनेजमेंट गुरु बताते हैं। एक तो पहले विधानसभा चुनावों में प्रदेश में इंदौर संभाग की जिम्मेदारी मिलने पर पार्टी को संभाग में ही नहीं जितवा पाए और दूसरे उपचुनावों में डबरा सीट तक नहीं जितवा पाए। ना घर के रहे ना घाट के? अब सीएम इन वेटिंग से दो नाम कम हुए हैं।

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अब आत्ममंथन की जरूरत
प्रश्चिम बंगाल और दमोह के नतीजे भारतीय जनता पार्टी के लिए वापस आत्ममंथन की जरूरत बताते हैं। चुनावी विश्लेषकों के मुताबिक मध्यप्रदेश में भी भाजपा को अपनी पूरी रणनीति पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। मध्य प्रदेश में चुनाव को लगातार जीतने का मंसूबा रखने की रणनीति को इससे झटका लगेगा। खासतौर पर दमोह की असफलता मध्य प्रदेश भाजपा के लिए बड़ा स्थानीय झटका है। इसका एक पहलू दलबदल की राजनीति को जनता द्वारा नकारना भी माना जा रहा है, इसलिए भाजपा के लिए प्रदेश की सियासत को लेकर पुनर्विचार के हालात बन गए हैं।