
MP News: प्रदेश के सरकारी अस्पतालों(Health Department) में जांच सुविधाएं देने के लिए अनुबंधित साइंस हाउस मेडिकल्स प्राइवेट लिमिटेड पर कई गंभीर आरोप लगे हैं। कंपनी पर अस्पतालों में मरीजों की जांच ऊंची दरों पर करने और फर्जी मरीजों के नाम पर करोड़ों रुपए घपला करने के आरोप लगे हैं। दिग्विजय सिंह(Digvijay Singh) ने सरकार से जांच की मांग की है।
कंपनी के भ्रष्टाचार और मिलीभगत की कहानी टेंडर लेने के लिए अपनाई गई प्रक्रिया से ही शुरू हो गई थी। टेंडर के लिए साइंस हाउस ने सबसे ज्यादा छूट का प्रस्ताव दिया। प्रतिद्वंद्वी एल-2 कंपनी भी दूसरे नंबर पर थी। प्रक्रिया में दोनों कंपनियां आमने-सामने थी, लेकिन ठेका साइंस हाउस को मिला। इसके बाद एल-2 कंपनी न्यूबर्ग का विलय साइंस हाउस में हो गया। फिर दोनों ने पार्टनरशिप में काम भी शुरू कर दिया। यानी सिर्फ टेंडर में छा प्रतियोगिता के लिए ही यह फर्म बनी थी। राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने साइंस हाउस पर भारी भ्रष्टाचार और सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाने के गंभीर आरोप लगा डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ल से उच्चस्तरीय जांच की मांग की है। सिंह ने आरोप लगाया कि साइंस हाउस ने फर्जी मरीजों और काल्पनिक जांचों को दिखाकर सरकार से सैकड़ों करोड़ रुपए का भुगतान लिया।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) कार्यक्रम के तहत प्रदेश की स्वास्थ्य संस्थाओं में हब एंड स्पोक मॉडल के तहत जांच सेवाएं देने के लिए 25 मई 2021 को टेंडर जारी किया गया। टेंडर में एनएबीएल लैब की दरेंशामिल की गई। लेकिन इस दौर में किसी भी सरकारी लैब के पास एनएबीएल सर्टिफिकेट नहीं थे। ऐसे में एनएबीएल मानकों से जुड़ी विश्वसनीयता का हवाला दिया गया। जिम्मेदारों ने टेंडर में जांच की शुल्क दरें सामान्य से 25% अधिक तय कर दी। आरोप यह भी है कि सबकी मिलीभगत से पूरे मामले में ऐसा फर्जीवाड़ा किया गया कि पांच साल में स्वास्थ्य विभाग ने 150 से 200 करोड़ रुपए निजी संस्थाओं को सिर्फ उन मानकों के आधार पर दे दिए गए, जो मानक कभी पूरे ही नहीं हुए।
एनएचएम के जारी टेंडर प्रक्रिया के दौरान दो कंपनियां साइंस हाउस मेडिकल्स प्रालि और न्यूबर्ग सुप्राटेक रिफ्रेंस लैबोरेट्रीज प्रालि प्रतिद्वंद्वी की तरह सामने आईं। दोनों ने अलग-अलग बोली लगाई और दरें दीं। प्रक्रिया पूरी होने के बाद वर्क ऑर्डर साइंस हाउस और सोदानी हॉस्पिटल्स एंड डायग्नोस्टिक प्रालि के समूह को 3 नवंबर 2021 को जारी किया। लेकिन एक माह बाद ही साइंस हाउस और न्यूबर्ग का विलय हो गया। वे साझेदार बन गए। इसके बाद साइंस हाउस को मिले टेंडर को दोनों ने मिलकर अमलीजामा पहनाया। बताया जा रहा है कि टेंडर के डॉक्यूमेंट में ऐसी मिलीभगत पूरे तरीके से प्रतिबंधित थी। ऐसा होने पर दंडात्मक कार्रवाई के प्रावधान भी थे, लेकिन पूरे मसले पर तत्कालीन जिम्मेदारों ने आंखें मूंद लीं। नतीजा, खुलकर सरकारी खजाने को खाली करने का खेल चलता रहा।
Updated on:
25 Sept 2025 08:29 am
Published on:
25 Sept 2025 08:12 am
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