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उस पर्ची में ऐसा क्या था जिसे लेकर कांग्रेस ऑफिस से बाहर आए थे कमलनाथ और हार गया सिंधिया परिवार

एक पर्ची में लिखे दो कोड का क्या था रहस्य।

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भोपाल

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Pawan Tiwari

Sep 07, 2019

kamal nath

भोपाल. महीना था दिसंबर और साल था 1993। भोपाल में धूप खिली थी। वक्त दोपहर का था और मौसम सुहाना था तो कांग्रेस के दफ्तर 'इंदिरा भवन' के गलियारों में गहमा-गहमी थी। एक नेता हाथ में एक पर्ची लेकर कार्यालय से बाहर आता है। दौड़कर दिल्ली फोन करता है। फोन उठाते हैं तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंहा राव। उन्हें दो नंबर बताए जाते हैं। एसएल 56, डीएस 103 और उसके बाद फोन कट जाता है। माहौल में सन्नाटा पसर जाता है। एक राजा अपने ही रियासत के दो महाराजा को चुनौती देता है। साल था 1993 का और 2018। दोनों बार इस चुनौती में जीत मिलती है राजा को...पर सियासत का ये राजा मात भी खाता है, वनवास भी काटता है। चाणक्य की उपाधि भी दी जाती है पर एक साध्वी इसके
सियासी जीवन के लिए संकट बनकर आती है।







अभी हमने आपको जो बातें बताईं हैं वो एक ही राजनेता की है। नाम है दिग्विजय सिंह। राघौगढ़ सियासत के राजा हैं। तो सियासत के चाणक्य। 1993 में मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनती है। मुख्यमंत्री का चयन करने के लिए दिल्ली से तीन पर्यवेक्षक साथ में आते हैं। मुख्यमंत्री कौन होगा इसके लिए विधायकों की बैठक होती है। मुख्यमंत्री उम्मीदवारों के लिए विधायक वोट करते हैं और रिजल्ट आता है। तब एक नेता कांग्रेस कार्यलाय से पर्ची लेकर बाहर आता है। उस नेता का नाम था कमलनाथ। तब के छिंदवाड़ा के सांसद और नरसिम्हा राव सरकार में मंत्री। जो पर्ची उनके हाथ में थी। उस पर एक नंबर लिखा था। एसएल 56, डीएस 103 इसका मतलब था। दिग्विजय सिंह को मिले 103 वोट और श्यामाचरण शुक्ल को 56
वोट। इस तरह दिग्विजय सिंह पहली बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बनते हैं।

ड्राइवर की भविष्यवाणी
साल था 1998 का नरेन्द्र मोदी मध्यप्रदेश के चुनाव प्रभारी थे। प्रचार करके रायपुर से भोपाल लौटे थे। एयरपोर्ट से पार्टी के दफ्तर जा रहे थे। तभी हमीदिया अस्पताल के पास उनका काफिला रोक दिया जाता है। ड्राइवर कहता है हमें जाने दो हमारे गाड़ी में नरेन्द्र मोदी हैं। पुलिसकर्मी जवाब देता है सीएम दिग्विजय सिंह का काफिला आ रहा है अभी नहीं जाने दे सकते गाड़ी में कोई भी हो। तब ड्राइवर कहता है थोड़े दिन रूक जाओ हमारे नेता के लिए भी काफिले रूकेंगे।


महाराजा को दी मात
महाराजा थे माधवराव सिंधिया। राघोगढ़, ग्वालियर रियासत के अंदर ही आता है। 1993 में कांग्रेस की जीत होती है। दिग्विजय सिंह उस समय प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष थे। जीत के बाद मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में श्यामा चरण शुक्ल, माधवराव सिंधिया और सुभाष यादव जैसे नेता शामिल थे। दिग्विजय तो सांसद थे वो दौड़ में ही नहीं थी। माधवराव और श्यामाचरण शुक्ल ही सीएम की दौड़ में सबसे आगे थे। दिग्विजय को दौड़ में शामिल करने के लिए अर्जुन सिंह ने पिछड़े जाति के सीएम का मुद्दा उठाया। सुभाष यादव का नाम आगे बढ़ा दिया पर बैठक में सुभाष के नाम पर सहमति नहीं। अर्जुन सिंह यही चाहते थे। फिर माधवराव सिंधिया को दिल्ली फोन किया जाता है। उन्हें कहा जाता है आप हेलीकॉप्टर तैयार रखिएगा। जैसे ही फोन आए आप भोपाल आ जाएगा। इस दौरान मुख्यमंत्री उम्मीदवरों के लिए वोटिंग कराई जाती है सबसे ज्यादा वोट मिलते हैं दिग्विजय को। वो मुख्यमंत्री बनते हैं और माधवराव सिंधिया दिल्ली में फोन का ही इंतजार करते रह जाते हैं।

अब बात दूसरे महाराज की
2018 में मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव होते हैं। कांग्रेस को जीत मिलती है। मुख्यमंत्री के लिए नाम सामने आता है। माधवराव सिंधिया के बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया का और कमलनाथ का। दिग्विजय खेमा कमलनाथ के साथ खड़ा होता है और एक बार फिर से महाराज को अपने ही रिय़ासत के राजा के हाथों हार मिलती है। मुख्यमंत्री कमलनाथ बनते हैं।