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Eid ul-Adha 2019 : दो शिफ्टों में होगी ईद-उल-जुहा की नमाज, जानिये क्या है बकरा-ईद का महत्‍व

locationभोपालPublished: Aug 10, 2019 06:47:49 pm

Submitted by:

KRISHNAKANT SHUKLA

Eid ul-Adha 2019 : bakrid celebration and importance – ईद-उल-अजहा का पर्व 12 अगस्त को मनाया जाएगा। सकलैनी मस्जिद में दो बार अदा की जाएगी ईद नमाज, पहली नमाज सुबह 7.30 व दूसरी सुबह 8.15 बजे होगी।

Eid ul-Adha 2019

Eid ul-Adha 2019 : दो शिफ्टों में होगी ईद-उल-जुहा की नमाज, जानिये क्या है बकरा-ईद का महत्‍व

भोपाल. ईद-उल-अजहा ( Eid ul-Adha ) का पर्व 12 अगस्त को मनाया जाएगा। ईदगाह सहित शहर की कई मस्जिदों में ईद की विशेष नमाज अदा की जाएगी। इस बार भी अशोका गार्डन 80 फीट रोड स्थित सकलैनी जामा मस्जिद में ईद की नमाज दो शिफ्टों में होगी। पहली सुबह 7.30 और दूसरी बार सुबह 8.15 बजे ईद की नमाज अदा कराई जाएगी।

दो शिफ्टों में होगी नमाज

सकलैनी मस्जिद के सदर सूफी नूरूद्दीन सकलैनी ने बताया कि लोगों की बढ़ती संख्या को देखते हुए ऐसा किया जाएगा। यहां पिछले कई वर्षों से दो शिफ्टों में नमाज अदा कराई जा रही है। पहली नमाज मुफ्ती एहले सुन्नत वल जमात मुफ्ती रेहान और दूसरी नमाज सकलैनी जामा मस्जिद के इमाम मौलाना गुलजार साहब अदा कराएंगे। सबसे पहले सुबह 7 बजे ईदगाह में नमाज होगी। इसके बाद शहर की अन्य मस्जिदों में ईद की नमाज होगी।

बकरीद का महत्‍व

बकरीद का दिन फर्ज-ए-कुर्बान का दिन होता है। इस्लाम में गरीबों और मजलूमों का खास ध्यान रखने की परंपरा है। इसी वजह से बकरीद पर भी गरीबों का विशेष ध्यान रखा जाता है। इस दिन कुर्बानी के बाद गोश्त के तीन हिस्से किए जाते हैं। इन तीनों हिस्सों में से एक हिस्सा खुद के लिए और शेष दो हिस्से समाज के गरीब और जरूरतमंद लोगों में बांट दिए जाते हैं। ऐसा करके मुस्लिम इस बात का पैगाम देते हैं कि अपने दिल की करीबी चीज़ भी हम दूसरों की बेहतरी के लिए अल्लाह की राह में कुर्बान कर देते हैं।

बकरीद क्‍यों मनाई जाती है?

इस्‍लाम को मानने वाले लोगों के लिए बकरीद का विशेष महत्‍व है। इस्‍लामिक मान्‍यता के अनुसार हजरत इब्राहिम अपने बेटे हजरत इस्माइल को इसी दिन खुदा के हुक्म पर खुदा की राह में कुर्बान करने जा रहे थे। तब अल्लाह ने उनके नेक जज्‍बे को देखते हुए उनके बेटे को जीवनदान दे दिया। यह पर्व इसी की याद में मनाया जाता है। इसके बाद अल्लाह के हुक्म पर इंसानों की नहीं जानवरों की कुर्बानी देने का इस्लामिक कानून शुरू हो गया।

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