
200 डिग्री पर ऑक्सीजन की मदद से ग्लास को मोल्ड तैयार कर हैं वर्क
भोपाल। गौहर महल में चल रहे सावन उत्सव में ग्वालियर के ओमप्रकाश गुप्ता क्रिस्टल, गन मैटल और सफेद पर्ल से बने डिफरेंट आइटम्स लेकर आए हैं। उनका कहना है कि ग्लास को मोल्ड करना काफी कठिन होता है। जरा सी असावधानी होने पर ये टूट जाता है। ग्लास को शेप देने के लिए ऑक्सीजन और कार्बन डाइ ऑक्साइड सिलेण्डर की मदद से दौ सौ डिग्री तक तापमान मेंटेंन किया जाता है। इसके बाद ग्लास को गर्म कर उसे तत्काल सांचे में ढाल दिया जाता है। उन्होंने पांच इंच से लेकर तीन फीट तक के आइटम्स तैयार किए हैं। जिसमें पशु-पक्षी से लेकर, भगवान और डिकोरेटिव आइटम्स शामिल हैं।
ओमप्रकाश का कहना है कि आगरा के पास के इलाकों में ग्लास का काफी काम होता है। उन्होंने चार सालों तक वहां ट्रेनिंग ली। इसके बाद दो से तीन इंच के डग तैयार करने लगे। एक पीस को तैयार करने में उन्हें दो से तीन घंटे लग जाते थे। डिफरेंट कलर्स के ग्लास पर वे अलग-अलग शेप्स देते हैं।
सनील कॉटन बदलता है तापमान
वहीं, अकेन्द्र सिंह का कहना है कि वे सनील धागा की मदद से बेडशीट तैयार करते हैं। इसकी खासियत होती है कि ये कॉटन की अपेक्षा काफी ठंडा होता है। ये वेदर के हिसाब से खुद ही तापमान मेंटेंन कर लेता है। यानी ठंड में गर्म तो गर्मी में ठंडा रहता है। वहीं होशगंबादा की लक्ष्मी बाई सागौन से बने उत्पाद लेकर इस मेले में आई है। लक्ष्मी बाई का कहना है कि बचपन में उनके गांव में कुछ कलाकार वुडन वर्क करते थे। उन्हें देख वे भी इस कला को सीखने लगी। वे सागौर की तख्तियों पर श्रवण का अपने माता-पिता को चार धाम की यात्रा करना, महाभारत जैसे पौराणिक संवादों को तो उकेरती ही हैं। साथ ही ट्राइबल लाइफ को भी उन्होंने कई तरह के आकार दिए हैं। वे लकड़ी से डेकोरेटिव आइटम्स भी तैयार करती है।
Published on:
19 Aug 2018 10:32 am
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