
पढ़ाई के लिए किया कठिन संघर्ष
भोपाल। एमपी की राजधानी भोपाल के हर्षित द्विवेदी ने एक बार फिर यह साबित किया है कि सफलता, कठिन संघर्षों के बाद ही मिलती है। हर्षित का परिवार कच्चे मकान में रहता है जिसमें बिजली भी नहीं रहती। सबसे बुरी बात तो यह थी कि पढ़ाई के लिए स्कूल की फीस भरने या नौकरी के आवेदन तक के लिए पैसे नहीं थे लेकिन उनका हौसला कम नहीं हुआ। उन्होंने सब्जी बेचकर पैसे जुटाए और अब लेफ्टिनेंट बन गए हैं।
मूलत: यूपी के छोटे से गांव इछावर के हर्षित द्विवेदी के पिता किसान हैं। 7 भाई बहनों के उनके परिवार की आर्थिक स्थिति जरा भी ठीक नहीं थी। गांव में कच्चे मकान में रहते थे जहां बिजली भी नहीं थी। पढ़ने के लिए स्कूल जाने के साथ वे नौकरी भी करते रहे। स्कूल के जूनियर्स को ही ट्यूशन पढ़ाई, यहां तक कि सब्जी भी बेची। 12वीं करने के बाद वे भोपाल आ गए और यहां पैसे जुटाने के लिए मैनिट के बच्चों को पढ़ाया।
वे 12वीं के बाद ही टीएएस के लिए चुन लिए गए थे। चार साल के प्रशिक्षण के बाद वे लेफ्टिनेंट बन गए हैं। हर्षित कहते हैं कि अब देश की सेवा करना है। वे इस बात पर खुशी जताते हैं कि उन्हें मंजिल मिल गई।
हर्षित जैसे ही शहर के सोहम कुशवाहा और अंकित जोशी भी संघर्ष कर आर्मी अफसर बने हैं। सोहम कुशवाहा ने कंबाइंड डिफेंस सर्विसेस यानि सीडीएस में देशभर में 58 वीं रैंकिंग प्राप्त की थी। इसी तरह अंकित जोशी जब तीन साल के थे तभी उनके पिता की मौत हो गई थी। मां राजकुमारी ने ब्यूटी पार्लर चलाकर उन्हें पढ़ाया।
Published on:
11 Jun 2023 02:47 pm
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