
15 अगस्त 1947 को देश भले ही आजाद हो गया था, लेकिन भोपाल की आजादी अभी दूर थी। देश की आजादी के करीब ढाई साल बाद तक भोपाल को आजादी का इंतजार करना पड़ा। दरअसल देश की आजादी के समय भोपाल एक नवाबी रियासत था। यहां नवाब हमीदुल्लाह खान का शासन था।
भोपाल में नवाबी शासन था और नवाब हमीदउल्लाह खान इस मूड में कतई नहीं थे कि वे भारतीय संघ के साथ विलय करें। आजादी से दो दिन पहले 13 अगस्त 1947 को भारतीय संघ की ओर से उन्हें विलय करने को कहा गया, तब नवाब हमीदुल्लाह खान ने साफतौर पर कहा था कि वो अपनी रियासत को आजाद रखेंगे।
भारतीय संघ में शामिल नहीं होंगे। नवाब साहब की दिली तमन्ना थी कि भोपाल रियासत भारत से अलग हुए पाकिस्तान के साथ मिलाया जाए। वे जिन्ना से प्रभावित थे और पाकिस्तान के साथ विलय करने की जिद पर अड़ गए थे। ऐसे हालात में 15 अगस्त को देश की आजादी के बाद भी भोपाल रियासत में राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराना एक जुर्म था।
इतिहास के पन्नों को पलटा तो भारत की आजादी के ढाई साल बाद भोपाल में क्रूरता का एक ऐसा किस्सा सामने आया, जिसे कम ही लोग जानते हैं। बात है… 14 जनवरी 1949 की… भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हो चुका था। देशभर में तिरंगा लहरा रहा था, लेकिन भोपाल तब भी गुलामी की जंजीरों में जकड़ा था, ब्रिटिश नहीं, लेकिन नवाबी रियासत की गुलामी।
आलम ये था कि भोपाल में तिरंगा लहराना और वंदे मातरम बोलना तक एक गुनाह था। भोपाली रियासत में जनता पीड़ित थी और वो जल्द से जल्द नवाब की गुलामी से निकलकर भारत में शामिल होना चाहती थी।
उधऱ दिल्ली में पंडित जवाहरलाल नेहरू की सरकार आकार ले चुकी थी। यहां आजादी का संघर्ष तेज हो चुका था। इधर भारत आजाद हो चुका था और भोपाल रियासत के लोग अब भी आजादी के लिए जान दे रहे थे।
उसी दौर में रायसेन जिले में स्थित बोरास गांव में उस समय ऐसी घटना हुई, जिसने देशभर में आक्रोश पैदा हो गया था। यहां मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जा रहा था, मेला लगा हुआ था। नर्मदा किनारे स्थित बोरास गांव में तिरंगा लहराने की सूचना भोपाल के नवाब को मिल गई थी।
नवाब ने अपने सबसे क्रूर थानेदार जाफर खान को वहां पदस्थ कर दिया। जाफर खान भी अपनी टुकड़ी को लेकर संक्रांति के मेले में तैनात हो गया था।
थानेदार जाफर अली खां की चेतावनी भरी आवाज गूंजी। नारे नहीं लगेंगे, यहां कोई झंडा नहीं फहराया जाएगा। अगर किसी ने भी आवाज निकाली तो उसे गोली से भून दिया जाएगा। उसी समय 16 वर्ष का किशोर छोटेलाल आगे आया। उसने जैसे ही भारत माता की जय का नारा लगाया, तो बौखलाए थानेदार ने वीर छोटेलाल को गोली मार दी।
शहीद छोटेलाल के हाथ से तिरंगा ध्वज गिरने को ही था कि तभी सुल्तानगंज (राख) के 25 वर्षीय वीर धनसिंह ने आगे बढ़कर ध्वज अपने हाथों में थाम लिया। क्रूर थानेदार ने धनसिंह के सीने पर गोली मार दी।
इससे पहले कि वह गिरता कि मंगलसिंह ने तिरंगा थाम लिया। वीर मंगल सिंह बोरास का 30 वर्षीय युवक था। उसने भी गगन भेदी नारे लगाने शुरू कर दिया और थानेदार की गोली उसके सीने को भी पार करती हुई निकल गई।
मंगलसिंह के शहीद होते ही भंवरा के 25 वर्षीय विशाल सिंह ने आगे बढ़कर तिरंगा पकड़ लिया उसकी शान बनाए रखी। वह भी भारत माता की जय के नारे लगाने लगा।
तभी लगातार दो गोलियां ठांय-ठांय करती हुई उसकी छाती के आर-पार हो गईं। लेकिन फिर भी विशाल सिंह ने ध्वज को छाती से चिपकाए एक हाथ से थानेदार की बंदूक पकड़ ली। तभी विशालसिंह निढाल होकर जमीन पर गिर गया।
गिरने के बाद भी वह होश में था और वह लुढ़कता, घिसटता नर्मदा के जल तक आ गया, उसने तिरंगा छिनने नहीं दिया। लगभग दो सप्ताह बाद उसके प्राण निकले। इस तरह भोपाल रियासत के विलय के लिए भी एक क्रांति हुई, जिसमें वीरों ने अपनी जान की आहूति दी।
Updated on:
14 Aug 2024 01:07 pm
Published on:
14 Aug 2024 09:36 am
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